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________________ प्र. श.३ उ.२ सू. ९ शक्रस्य विचारादिनिरूपणम् ४४७ उत्तरपौरस्त्यं दिग्मागम् अपक्रामति, बामेन पादेन त्रिकृत्वो भूमि दलयति, चमरम् असुरेन्द्रम् अमुरराजम् एवम् अवादीत्-मुक्तोऽसि भोः ! चमर । अमरेन्द्र । असुरराज ! श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य प्रभावेण नहि तब इदानीं मम भयम् अस्ति, इति क्रत्वा यामेव दिशं प्रादुर्भूतः तामेव दिशं प्रतिगतः।.९।। नमंसइ) अब आगे पुनः मैं ऐसा नहीं करूंगा इस प्रकार कह कर उस शक्रने मुझे वंदनी को नमस्कार किया (उत्तरपुरस्थिमयं दिसी भागं अवकमइ) वंदना नमस्कार कर फिर वह शक उत्तर पौरस्त्य (ईशानकोण) की तरफ चला गया (वामेणं पाएणं तिक्खुत्तो भूमि दलेइ, चमरं असुरिंदं असुररायं एवं क्यासी) वहां जाकर उसने वाम चरणको तीनवार पृथ्वीपर पटका तथा असुरेन्द्र असुरराज चमर से इस प्रकार कहा-(मुक्को सिणं भो चमरा ! असुरिंदा ! असुरराया ! समणस्स भगवओ महावीरस्स पभावेणं) हे असुरेन्द्र असुरराज चमर ! तुम श्रमण भगवान् महावीरके प्रभाव से मेरे द्वारा छोड दिये गये हो (नहि ते इयोणि ममाओ भयं अत्थि) अब तुम्हें मुझसे कुछ भी भय नहीं रहा हैं । (त्तिकटु) इस प्रकार कहकर वह शक्र (जामेव दिसं पाउन्भूए तामेव दिसं पडिगए) जिस दिशा से प्रकट हुआ था-आया था उसी दिशा की तरफ लौट गया । પણ આવી ભૂલ નહીં કરું. એમ કહીને તેણે મને વંદણુ કરી, નમસ્કાર કર્યા. (उत्तरपुरस्थिमयं दिसीभागं अवक्कमइ) या नभा२ ४शन ते थानाभां यायो गयो (वामेणं पाएणं तिक्खुत्तो भूमि दलेइ, चमरं अमुरिदं अमुररायं एवं क्यासी) ती मते तेणे समा पाने वा२ सभीन ५२ ५७डीन हेवेन्द्र देवरा०४ यभरने मा प्रभाए धु-(मक्को सि णं भो चमरा ! असुरिंदा ! असुरराया ! समणस्स भगवओ महावीरस्स पभावणं) के मसुरेन्द्र ! असु२२१०४ यभर ! શ્રમણ ભગવાન મહાવીરના પ્રભાવથી આજે તું મારા હાથમાંથી ભયમુકત થવા પામ્યું છે. (नहि ते इयाणि ममाओ भयं अथि) व तारे भाराथी ४२वार्नु १२९ नथी. (चिकट) में प्रभाए जानते २४ (जामेव दिसं पाउन्भूए तामेवदिस पडिगए) જે દિશામાંથી પ્રકટ થયે હતું, એજ દિશામાં પાછા ફરી ગયે.
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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