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________________ ममेयचन्द्रिका टी. श.३ उ.२ सू. ९ शक्रस्य विचारादिनिरूपणम् ४४५ अवादीद-एवं खलु भगवन् ! अहं त्वां निश्रायः चमरेण अमरेन्द्रेण, अमरराजेन स्वयमेव अत्याशातितः ततो मया परिकुपितेन सता चमरस्य अमरेन्द्रस्य असुरराजस्य वधाय वजं निःसृष्टम् । ततो मम अयमेतद्रूपः आध्यात्मिका, यावत्-समुदपद्यत-नो खलु प्रभुश्चमरः अमरेन्द्रः, अमरराजस्तथैव यावत्अवधि प्रयुजे, देवानुपियान् अवधिना आभोगयामि-हा! हा! अहो ! हतो. कहने लगा-एवं खलु भंते ! अहं तुम्भ नीसाए चमरेणं असुरिदेणं असुररण्णा सयमेव अचासाइए) हे भदन्त ! असुरेन्द्र असुरराज चमरने आपके सहारे से मुझे मेरी शोभासे भ्रष्ट करनेका प्रयत्न किया (तएणं मए परिकुविएणं समाणेणं चमरस्स असुरिंदस्स असुररण्णो यहाए वज्जे निसट्टे ) उस समय मैने क्रोधमें आकर उस असुरेन्द्र असुरराज चमरको मारनेके लिए वज्र छोडा (तएणं) वाद में (ममं) मुझे (इमेयाख्वे अज्झथिए जाव समुपन्जित्था) इस प्रकार का आध्यात्मिक यावत् मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ कि (नो खलु पभू चमरे असुरिंदे असुरराया तहेव जाव ओहिं पउंजामि) असुरेन्द्र असुरराज चमर स्वयंशक्तिशाली तो है नहीं और न उसमें स्वयं यहां तक आनेकी शक्ति ही है वह तो तयारूप भगवंत अरिहंत आदि के सहारे से यहां तक आ सकता है-अतः इसी कारण वह यहां आया है-इत्यादि विचार करके पीछे मैंने अपने अवधिज्ञान का उपयोग किया तय (देवाणुप्पिए ओहिणा आभोएमि) अवधिज्ञानसे आप देवानुप्रियको देखा-(हा! हा ! अहो! हतोम्हि तिकटु भने ! नमः॥२. शन तो भने मा प्रभारी ४घु ( एवं खलु भंते ! अहं तुम्भं नीसाए चमरेणं अमुरिंदेणं अमुररणा सयमेव अचासाइए) Dard ! અસુરેન્દ્ર, અસુરરાજ ચમરે આપને આશ્રય લઈને મને અપમાનિત કરવાનો પ્રયત્ન ध्य छे. (तएणं मए परिकुविएणं समाणेणं चमरस्स अमुरिंदस्स असुररण्णो वहाए वज्जे निसट्टे) त्या अधाशमा मावान मसुरेन्द्र मसु२२।। यभरनी हत्या ४२पाने भाटे में १०० स्युडतु, (तएण) त्यार पा (ममं) भने (इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुपन्जित्था) मे आध्यात्मि, (यावत) भागत किया थयो (नो खलु पभू चमरे अमुरिंदे अमरराया तहेव जाव ओहिं पउंजामि) सुरेन्द्र मसु२२००० ચમર આટલે બધે શકિતશાળી નથી. સૌધર્મકર્ષ સુધી આવવાની તેની પોતાની તે શક્તિ નથી જ. તે અતિ ભગવાન આદિને આશ્રય લઈને જ સીધર્મ દેવલોકમાં આવી શકયો હશે, એ વિચાર કરીને મેં મારા અવધિજ્ઞાનને ઉપચાગ કર્યો. ત્યાર (देवाणुप्पिए ओहिणा आभोएमि) ५ वानुप्रियन लया. (हा! हा! अहो!
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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