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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३. उ.२ मू. ९ शक्रस्य विचारादिनिरूपणम् ४४३ अर्हचैत्यानि वा अनगारान् वा भावितात्मनो निश्रया ऊर्ध्वम् उत्पतति, यावत् सौधर्मः कल्प तद्महादुःखं खलु तथारूपाणाम्, अर्हताम् भगवताम् अनगाराणाञ्च अत्याशातनया इति कृत्वा अवधि प्रयुङ्क्ते, माम् अवधिना आभोगयति, हा ! हा ! अहो ! हतोऽहम् अस्मि, इति कृत्वा तया उत्कृष्टया यावत्अपनी ताकतसे यावत् सौधर्म कल्पतक ऊँचे आ सके (णण्णस्थ अरिहंते वा अरिहंतचेझ्याणि वा, अणगारे वा भावियप्पणो णीसाए उद्दे उप्पयए जाव सोहम्मो कप्पो)परन्तु जब यह अरिहंत का, अरिहंत चैत्योंका अर्थात्-अहैत याने साधुओका अथवा भावितात्मा किसी अनगारका सहारा ले लेता है तो उसमें वह शक्ति आ जाती है कि वह यावत् सौधर्मकल्पतक ऊंचे आसकता है-आ जाता है (तं महादुक्खं खलु तहा स्वाणं अरिहंताणं भगवंताणं अणगाराणं य अच्चासायणाए) अतः यह महादुःखकी बात हुई है-जो इस तरह से उसके ऊपर मैंने वन फेंका है । क्यों कि इस प्रकार से तो उस वज्र द्वारा उन तथारूपवाले अरिहंत भगवनकी, अथवा भावितात्मा अनगारकी आशातना होगी । “तिकटु' इस प्रकारसे विचार करके उसने 'ओहिं पउजइ' अवधिज्ञान का उपयोग किया (ओहिणा) उस अवधिज्ञान से उसने (ममं आभोएइ) मुझे देखा 'हा ! हा ! अहो ! हतो अहंमसि त्तिकट्टु ताए उकिटाए जाच दिव्याए देवगईए वज्जस्स वीहिं अणुगच्छमाणे मुझे देखकर 'अरे रे अहो ! अब मैं मारा गया इस प्रकार शतिया सोधप: सुधी भावाने समर्थ नथी. (णण्णत्थ अरिहंतचेइयाणि वा, अणगारे वा भावियप्पणो णीसाए उट्ट उप्पयए नाव सोहम्मो कप्पो) પણ જે તે અહંતનું, અહંત ચિત્યનું અથવા કેઈ ભાવિતાત્મા અણગારનું શરણ पीसरे तो ते सोपभ६५ सुधी पडायवान समर्थ मनी श छे. (तं महादुक्खं खलु तहाख्वाणं अरिहंताणं भगवंताणं अणगाराणं य अच्चासायणाए) तो में તેના ચિમરના] ઉપર વજી છાડયું એ ઘણે દુઃખને પ્રસંગ બને છે. આ રીતે તમારા द्वारा मे मतलवाननी मथवा मावितामा म॥२नी माशतना थशे. (त्तिक) मा ने पियार ४शन ते (ओहि पाउंजा) भवधिज्ञानना Gun ध्य. (ओहिणा ममं आमोएइ) मने सवधिज्ञानथी भने नया. (हा! हा! अहो ! हतो अहमसि त्ति कटु ताए उकिटाए जाव दियाए देवगईए वज्जस्स वीहिं अणुगच्छमाणे) भने उन-भारी निशाथी यभरे ५२४ Guid यो ते तीन तो विया ध्यो, “मरे रे ! वे भाई भावी प-यु," सेवा विया२ श२ ते तना
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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