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________________ - - ४३४ भगवतीसरे मिसिमिसेमाणे' यार-मिरामिसमन् कोपेन दन्तीहरशनपूर्वकमिसमिस' इति अव्यकशन्दमुगारयन. यावत्करणाद 'हथिए चंटिरिकए' ति मटः कृषितः चण्डिक्यितः, इति संग्राहाम्, "तिरभि प्रिवलिकां प्रिवलियुतां रेखायोपेताम् 'मिउर्डि' भृकुटीम् भू निक्षेपं 'निढाले' ललाटे 'सार' संरत्य कृत्वा 'चमर अमरिंदं अमुररायं' चमरम् अमरेन्द्रम् अमुररानम् एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण 'वयासी' अवादीन-हंमोः । चमरा ! समिति अहवारच कमव्ययम्, भोः ! चमर! 'अमुरिंदा! अमुरराया ! अमरेन्द्र ! अमुररान ! अपत्पिपत्थिआ!' से वाणी के 'अकान्त, अप्रिय, अशुभ और अमनोज्ञ' ये पूर्वोक्त चार विशेपण ग्रहण किये गये हैं। कुपित होते ही 'मिसिमिसेमाणे उसे मिस मिसी छूटी-अर्धात् कोप से भरकर उसने अपने दांतों से ही अपने होठों को चपाते हुए और मिसमिस इस अव्यक्त शब्दका - उच्चारण उसके मुख से निकलने लगा, यहां यावत् पदसे 'क, कुविए, चंडिक्किए' इन पदोका संग्रह किया गया है 'तिवलिय' त्रियलितीनरेखाओं से युक्त 'भिडिं प्रकृटिको 'निडाले' ललाट पर 'साह' करके उस शक्रने 'चमरं असुरिंदं असुरराय' असुरेन्द्र असुरराज उस चमर से 'एवं वयासी' इस प्रकार कहा-'हे भो ! असुरिंदा असुरराया चमरा' अरे ओ असुरेन्द्र असुरराज चमर! 'अपत्थिय पत्थिया' मालूम देता है-आज मुझे तेरी मृत्य ने ही यहां भेजा है अर्थात मृत्यु जैसी अनिष्ट वस्तुको कोई भी नहीं चाहता है परन्तु અકાન્ત, અપ્રિય, અશુભ, અરુચિકર, આદિ વાણીનાં વિશેષ પ્રહણ કરાયાં છે. 'जाव मिसमिसेमाणे तेथी धूमामा य गया. तेले id ४ययाव्या भने होत नाय : ४२७या. मी 'यावत' ५४यो 'रुटे. कुविए. चंडिक्किए" पहे। अY ४रायां छे 'तिवलियं' र २ाथा युत 'भिरहिं अति निडाले ના કપાળે ચડાવીને એટલે કે કપાશથી ભ્રકુટિ ચડાવીને ભકટિ ચડાવતી વખતે તેના કપાળમાં ત્રણ રેખાએ સ્પષ્ટ દેખાતી હતી. તે કથન દ્વારા તેને અતિશય સાધ બતાવવાનું સૂત્રકારને આશય છે. આ રીતે अटवीत 'चमरं अमुरिदै असुरराय एवं वयासी' तेरे मसुरेन्द्र, ससुर यभरने मा प्रभाय धु- हंभो ! असुरिंदा असुरराया चमरा' गरे । मसुरेन्द्र असु२५ यभ२ ! 'अपस्थिय पत्थिया' भने तो मेम am छ, माता ने અહીં મેક છે! તું મરવાની ઈચ્છાથી જ અહીં આવ્યું લાગે છે. મને એમ લાગે
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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