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________________ ४२४ भमस्ती नियंगलोकम् फोरेमागेव' स्फोटयभित्र विस्फोटित जमिन 'परतलंआका शवलम् अन्तरिक्षम् , 'फत्याई छुमचिद् 'गज्जेते' गर्नन्-मेघवध्वनि करीन् 'क स्थइ' कुत्रचित 'विज्नुयायंते' विधुत्यमानः विधुदिव विद्योतमानः 'कस्थई' पचित् 'वासं वाममाणे वर्षा वर्पन 'फत्या' कुत्रचित् 'रयुग्यायं रजउद्घातम् धूलिसमूहम् 'पकरे माणे' मर्वन उपयन् 'कत्यह' कुत्रचित् 'तमुक्काय' तमस्कायम् अन्धकारपुअम् घोरान्धकारमिति यावत् 'पकरेमाणे' प्रकुर्वन-'वाणमंतरे देवे' वानन्यन्तरान् देवान् 'वित्तासमाणे वित्रासयन् प्रासमुत्पादयन् 'जोर सियेदेवे' ज्योतिपिकान देवान तेजास्वरूपान् चन्द्रसूर्यग्रहनक्षत्रताराभिधान देवान् 'दुहा' द्विधा 'विभयमाणे' विमनन् द्विभागस्थान कुर्वन् 'आयरक्खे देखें आत्मरक्षकान् देवान् 'विपलायमाणे' विपलायमानः विपलायमानान् 'फलिहरतिरंगू लोकको खेचसा लिया था 'अंबरतलं फोडे माणे व ' मानो आकाशको फोड रहा था इस तरहसे अधोलोक, मध्यलोक और अन्तरिक्षको करते हुए उसने 'फत्थर' कहीं पर तो 'गज्जते' मेघकी ध्वनि के समान गर्जनाकी 'कत्थई' कहीं पर वह 'विज्जुपायते' विजली के जैसा चमकिला 'कत्थई' कहीं पर वह 'वासं वासमाणे घृष्टि बनकर घरसा 'कत्थई' कहीं पर 'रयुग्घायं पकरेमाणे' उसने धूलिके समूह को उडाया 'कत्यह' कहीं पर 'तमुकायं पकरेमाणे उसने गाढ अंधकार के दृश्यका प्रकट किया, इस तरह से करते हुए उसने 'याणमंतरे देवे वित्तासमाणे' चानव्यन्तर द्यौंको त्रास उपजाया, 'जोइसिये देवे दुहा विभयमाणे' ज्योतिपक देवोंको तेज स्वरूप चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारोंको दो भागमें स्थापित किया, 'आयरक्खे देवे' आत्मरक्षक देवोंको 'विपलायमाणे, भगाया इस तरह करता हुआ नो मेया गया 'अंवरतलं फोडेमाणे' ! माशन त यार नाम्यु. अधाना, (तय गने मानी 640 श. ४२ना ते कन्या गते स्थने अपना वी orat ४२१. कत्थइ विज्जुयायंते ! is स्थणे विजाना वा यमा। ध्या, 'कत्थई वासंवासमाणे अध . स्थणे १२सा १२साल्या, 'कत्थइ रयुग्घायं पकरेमाणे' as tv न्याय धूमना गारगोटा या, 'कत्थइ तमुक्कायं पकरेमाणे' 38 न्याय त गाड આંધકાર પેદા કર્યો. આ રીતે ઉત્પાત કરતા તે આગળ વધે. તેના માર્ગમાં ‘mr मंतरे देवे. वित्तासमाणे . त पानव्यन्त२ वान रानी , हा विभयमाणे ज्योतिषी देवान , सूर्य, अंडी, नक्षत्र मा ३५
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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