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________________ भगवतीपत्रे टीका- 'वं सेयं खलु मे' तत्श्रेयः खलु मम तत्तस्मात् कारणात् श्रेयः कल्याणकरं शुभावसरः किल गम अत्याशातयितुमित्यग्रेणान्वयः, अत्याशातनायाः स्वरूपमाह - 'समणं भगवं' भ्रमणं भगवन्तं महावीरम् 'नीसाए' निश्रया तदाश्रयेण 'सकं देविंद' शक्रं देवेन्द्रं 'देवराय' देवराजम् 'सयमेत्र' स्वयमेव 'अच्चासाइए' अत्याशातयितुम् अत्याशातनां विधातुं गमनं ममश्रेय इति पूर्वेण ४१४ हनन करता हूं आज ही उन सबका वध करता हूं-मैं कहता हूं' कि जो अप्सराएँ मेरे आधीन नहीं है-वे सबकी सब मेरे आधीन हो जावें । (तिकटु तं अणि अकंतं अप्पियं असुभं अमणुष्णं अमणामं, फरुसं गिरं निस्सरह ) इस प्रकार कह कर फिर उस चमरने अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अशुभ, अमनोज़. असुन्दर, मनको नहीं चने वाले, कठोर, ऐसे वचनों का प्रयोग किया । टीकार्थ- 'तं गं खलु में' यह मेरे लिये इन्द्रको उसकी शोभा से भ्रष्ट करनेका शुभ अवसर है' ऐसा सम्बन्ध जोडने के लिये यहां 'तं सेयं खलु मे अच्चासादत्तए' ऐसा अन्वय कर लेना चाहिये । अब सूत्रकार अत्याशातना के स्वरूप को कहते है- 'समणं भगवं ' श्रमण भगवान् 'महावीरं णीसाए' महावीरकी निश्रासे-उनके आश्रय से 'सक्कं देविद' देवराय" देवेन्द्र देवराज शक्की 'सयमेव' एकाकी ही - और किसी दूसरेकी सहायता लिये बिना ही अच्चासहितए अज्ज वमि, अज्ज ममं अवसाओ अच्छराओ समुवणमंतु या हु ते सोनी હત્યા કરવાના છું આજે જ તે સૌના હું વધ કરવાની છું કે જે અપ્સરાઓ મારે અધીત नथी, ते सौ अत्यारे व भारे आधीन था लय. ( चिकट्ट ते अणि अर्कतं अपियं अनुभं, अमणुष्णं अमणामं, फरुसं गिरं निस्सर इ) भी प्रभारी महीने ते शभरे इरीथी अनिष्ट, अअन्त, अप्रिय, अशुल, अमनोज्ञ-असुंदर, भनने नहीं रुथनाश અને કઠાર વચના માલવા માંડયાં, ८ 1 टीअर्थ - 'सेयं खलु मे' शकेन्द्रले तेनी शोभाथी भ्रष्ट अश्वानो मा शुभ अवसर भने आप्त थयो छे," मेवा संबंध लेउपाने भाटे 'तं सेयं खलु मे अच्चासाइत्तए' भर्डी या शब्दसभूना अर्थ साथै श्रथ वाले वे सूत्रार मे बतावे छे है यमरेन्द्रने मेवा भयो शुभ अवसर भज्यो हतो - 'समणं भगवं महावीरं णीसाए' श्रभधु भगवान भडावीरनी निश्राथी तेमना माश्रय ने- 'सक्कं देविंद 'देवराय' हेवेन्द्र देवशन श४नी 'अच्चा साइत्तए' अत्याशातना करवाने भाटे संभ्रमानितं उरवाने भाटे-तेने शोभाथी भ्रष्ट ४२वाने भाटे 'सयमेव' म्वानं गमनं स्वाम
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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