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________________ ४१२ भगवती सूत्रे , विप्रासयन् २ ज्योतिषिकान् देवान् द्विधा विभजन २ आत्मरक्षकान् देवान विपलाय्यमानः २ परिवरत्नम् अम्बरतले व्यावर्तयन् व्यावर्तयन विभ्राजयन् विभ्राजयन्, तथा उत्कृष्ट्या यावत् तिर्यगसंख्येयानाम् द्वीपसमुद्राणाम् मध्ये मध्येन व्पतिवजन येनैव सौधर्मः कल्पः यत्रैव सो विमानम्, कौय सभा सुधर्मा तत्रैव उपागच्छति, एकं पादं पद्मवर वेदिकायां करोति, एकं पादं सभायां सुधर्मायां करोति, परिघरत्नेन महता महता शब्देन 1 ? कार्य करेमाणे) कहीं पर उसने गाढ अन्धकार को प्रकट किया । इस तरह करता हुआ यह चमर ऊपर की ओर चला ( वाणमंतरे देवे विनासमाणे, जोइसिएं देवे दुहा विभयमाणे ) चलते२ उसने चाणत्र्यन्तरदेवोंको घास युक्त कर दिया ज्योतिष्क देवों को दो विभागों में विभक्त कर दिया (आयरक्खे देवे विपलायमाणे) आत्मरक्षक देवोंको भगा दिया । ( फलिहरयणं अंपरतलंसि विग्रहमाणे ) परिघरत्नको वह आकाशमें घुमाने लगा । (वियट्टमांणे) घुमाते२ (विउभयमाणे विभायमाणे) और उसे चमकाते चमकाते वह (ताए उकिए जान तिरियमसंखेज्जाणं दीवसमुद्दाणं मज्झं मज्झेणं चीयवयमाणे जेणेव सोह्म्मे कप्पे ) उस प्रसिद्ध उत्कृष्ट देवगति से युक्त हुआ यावत् तिरछे असंख्यात द्वीप और समुद्रोंके बीच में से होकर निकला और निकल कर जहां सौधर्मकल्प था ( जेणेव सोहम्मवर्डिसए विमाणे) जहां सौधर्मावतंसक विमान था ( जेणेव सभा सुहम्मा) और जहाँ सुधर्मा सभाथी (तेणेव उवागच्छइ) वहां पर पहुंचा ( एगं पायं पउमवर ગઢ અંધકાર કરી નાખ્યો. આ રીતે ઉત્પાત મચાવતા તે ઉપરની દિશામાં આગળ વધ્યો. (वाणमंत देवे वित्तासमाणे) तेना भार्गभां भावता वानव्यन्तर हेवाने तेथे त्रास डायो, (जोइसिए] देवे दुहा विभयमाणे) ज्योतिषी हेपेाने को विभागमा विस्त उरी नाण्या, (आयरक्खेदेवे विपलायमाणे) तेथे आत्मरक्षक हेवाने नसाडी भूभ्या, (फलिहरणं अंवरतसि वियट्टमाणे) परिधरत्नने ते आशमां थारे २ववा evûl. (faqg910)) 20 álà àð kadı Headı (fassniantò facsarag10)) अने यभावतो यभावतो, (ताए उक्किहाए जाव तिरियमसंखेज्जाणं दीवसमुteri aai aai atयवोयमाणे जेणेव सोहम्मे कप्पे ) हृष्ट गतिथी उडता ઉડતા, તિર્થ Àાકના અસંખ્યાત દ્વીપસમુદ્રોની વચ્ચેથી પસાર થઈને તે સૌધમ પ सुधी आवा (जेणेव सोहम्मवर्डिसए विमाणे) तेमां नयां सौधर्भावित स विभान हर्तु (जेणेव सभा सुहम्मा) ते विभानभां नयां सौधर्म सभा हती, (तेणेव
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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