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________________ ४१० भगवतीम गर्जित्वा इयदेपितं करोति, कृत्वा हस्तिगुलगुलायितं करोति कृत्वा रथघनघनापितं करोति, कृत्वा पाददर्दरकं करोति, कृत्वा भूमिघपेटां ददाति, दवा सिंहनादं नदति, नदित्वा उच्छलति, उच्छलय मच्छलति, मच्छरय त्रिपर्दी छिनति, छित्वा वामं भुजम् उच्छ्रयति, उच्छ्राय्य दक्षिणहस्तमदेशिकया अङगुष्ठनखेन चापि तिर्यगुमुखं विडम्बयति, विडम्ब्य महता महता शब्देन कलकलरवं करोति, ( भयंकर) आकार वाला था, भास्वर था, भयानक था, गंभीर था, घाम उत्पन्न करनेवाला था, कालरात्रिकी मध्यरात्रि के समान और Great राशिके समान कृष्णवर्णका था और एक लाख योजन का विस्तार वाला था (विव्वित्ता) इस प्रकारका शरीर विक्रिया द्वारा निष्पन्न करके ( अप्फोडे, वग्गह, गज्जह) वह अपने हाथोंको पछाडने लगा, कूदने लगा, मेघकी तरह गर्जने लगा (पहेमियं करेइ) घोडेकी तरह हिनहिनाने लगा (हथिगुलगुलाइयं करेड़) हाथीकि तरह किलकिलाट करने लगा ( रहघणघणाइयं करेइ ) रथकी तरह घनघन करने लगा (पायदद्दरगं करेह) पैरोंको जमीन पर वडे जोरसे पटकने लगा । (भूमिचवेदयं दलयह) भूमि पर घूसा मारने लगा । ( सीहणादं नदर) सिंहकी तरह दहाड मारने लगा (उच्छोलेह) ऊपर की ओर उछलने लगा (पच्छोलेइ) पछाड मारने लगा ( तिवई छिंदइ) त्रिपदी को उसने छेद दिया (वामं भुयं ऊसवेइ) बायें हाथको ऊपर उठा लिया (दाहिणहत्थपदेसिणीए अंगुणहेण य वि तिरिच्छमुहं विडंबे) दाहिने ४२) हेतुं अने लीभ आारवाणु हेतुं, भास्वर (हीस्त) इतुं, भयान तुं, गंभीर हेतुं, ત્રાસજનક હતું,કાલરાત્રિની મધ્યરાત્રિ સમાન અને અડદના ઢગલા જેવું કૃષ્ણવ નું હતું, અને शेठ साम योन्जनना विस्तारवाणु तु, [ विउन्नित्ता ] म प्रहारना वैडिय शरीरनुं निर्माण ने [ अप्फोडे, चग्गर, गज्जइ ] ते पोताना हाथ पछाडवा साग्यो, ईहवा साग्यो भने भेधना देवी गना ४२: साग्यो, [ हयहेसियं करेई ] घोडानी प्रेम शुडवा साग्यो, [इत्थिगुलगुलाइय करे ] डाथीना देवी सीतसार ४२वा साभ्यो [रघणघणायं करे ] होता रथना देवी धधाटी ४२ लाग्यो, [पायदद्दरगं करेइ] लेरथी कभीन पर पग पछाडवा साग्यो, [भूमिचवेटयं दलय ] भीन उपर हाथ पटडीने नभीन पर आधात ४२वा लाग्यो, (सीहणादं नदइ) सिंहना नेवी गर्जना ४२वा साज्ये, (उच्छोलेइ) अथे छजना साग्यो, [पच्छोलेई ] नीचे पछाड घ्यावा लाग्यो, (तिवई छिंदर) रंगलूभिभां भहसनी प्रेम तेथे त्रियही छेन भ्यु, (बामंभूप ऊसवेइ) डाला डाथने जया उठावाने (दाहिणहस्थपदेसिणीए अंगु
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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