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________________ ४०६ भगवतीने पकरेमाणे, वाणमंतरे देवे वित्तासमाणे, जोइसिए देवे दुहा विभयमाणे; आयरक्खे देवे विपलायमाणे; फलिहरयणं अंबर तलंसि वियहमाणे, वियहमाणे विउभाएमाणे; विउभाएमाणे ताए उनिहाए जाव-तिरियमसंखेजाणं; दीव-समुदाणं; मज्ज्ञ मज्झेण वीइवयमाणे जेणेव सोहम्मे कप्पे जेणेव सोहम्मवडिसये विमाणे, जेणेव सभा सुहम्मा; तेणेव उवागच्छद; एगं पायं पउमवरवेइआए करेइ. एगं पायं सभाए सुहम्माए करेड़, फलिहरयणेणं महया महया सद्देणं तिक्खुत्तो इंदकीलं आडडेए; एवं वयासी-कहिणं भो ! सके देविंदे देवराया ? कहिणं ताओ चउरासीइ सामाणिअसाहस्सीओ? जाव-कहिणं ताओ चत्तारि चउरासीईओ आयरक्खदेवसाहस्सीओ? कहि णं ताओ अणेगाओ अच्छराकोडीओ ? अज्ज हणामि; अज्ज वहेमि; अन्ज ममं अवसाओ अच्छराओवसमुवणमंतु तिकटुतं.अणि अकंत;अप्पियं; असुभं; अमणुण्णं अमणाम, फरुसं; गिरं निसिरइ ॥ सू०७॥ __छाया-तत् श्रेयः खलु मम श्रमणं भगवन्तं महावीरं निश्रया शक्रं देवेन्द्र, देवराजम् स्वयमेव अत्याशातयितुम् इति कृत्वा एवं संमेक्षते, संप्रेक्ष्य शयनी'त सेयं खलु मे' इत्यादि । सूत्रार्थ-(त) तो (सेयं खलु मे) मुझे यह अवसर बडा ही कल्याणकारी मिला हैं-अर्थात् शक्रको परास्त करनेके लिये मुझे यह बड़ा अच्छा अवसर मिल गया है अतः (समणं भगवं महावीरेणीसाए 'त सेयं खलु मे' त्याह साथ-(i) .(सेयं खलु मे) नीय प्रमाणे ४२वामा भाइ श्रेय रहद मेर शहने परास्त ४२वानी मा सारीत भने भनी छ. (समर्ण भगवं महावीरं णीसाए सक्क देविद देवराय सयमेव अचासाइत्तए).श्रम मापान
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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