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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ३ उ. २ सू.३ चमरेन्द्रस्य पूर्वभवादि निरूपणम् ३६९ उपस्कार्य मित्रज्ञाति-निजक-स्वजन-सम्बन्धि-परिजनम् आमन्त्र्य उपर्युक्ताशनपानवस्वगन्धालङ्कारादिना सत्कार्य तेषां समक्षे ज्येष्ठपुत्रोपरि कुटुम्ब भरण-पोपणभारं निक्षिप्य तानापृच्छय । ततः 'सयमेव' स्वयमेव 'चतुप्पुडयं' चतुप्पुटकं दारुमयम् 'परिग्गह' प्रतिग्रहकं पात्रविशेपं 'गहाय' गृहीत्वा 'मुंडे भवित्ता' मुण्डो भूत्वा 'दाणामाए' दानमय्या 'दानामा' नामिकया 'पप्वजाए' प्रवज्यया 'पन्चइत्तए' प्रजितुम् 'पन्चइए वि प णं समाणे' मनजितोऽपिसन 'तं चेव जाव-तचैव यावत्-अत्र सर्व तामलि प्रव्रज्यानुसारं ज्ञातव्यम् यावत्करणाव-'इमं एसावं अभिग्गहं अभिगिण्डिस्सामि-'कप्पइ मे जावज्जीवाए तैयार करवाकर अपने स्वजन सम्बन्धियों को परिजनोंको आमंत्रित करूंगा आमंत्रित करके, उन सबका उन अशन, पान, वस्त्र, गंध, अलङ्कार आदि से खूप जीमा कर सत्कार करूंगा और सत्कार कर चुकने के बाद फिर में उन सबके समक्ष अपने ज्येष्ठ पुत्र को बुलाकर उसके ऊपर कुटुम्ब के भरण पोपणका भार रख दूंगा। पश्चात् उन सबसे पूछकर-आज्ञा लेकर 'चउप्पुडयं दारुमयं पडिग्गहिय' चार खानेवाले उस काष्ठ निर्मित पात्रको सयमेव अपने आप 'गहाय' उठा करके मैं 'मुंडे भवित्ता' मुंडित होकर 'दाणामाए पव्व नाए पन्चइए' दानामा प्रव्रज्यासे प्रवजित हो जाऊँगा 'पन्चइए वि णं समाणे तंचेव' प्रवजित होकर भी मैं उस प्रव्रज्याको तामलिकी पत्रज्याके अनुसार पालन करूंगा। यहां 'जाव' ऐसा जो पद दिया हैं उससे यह 'इमं एयाख्वं अभिग्गहं' से लेकर 'छट्ठस्स वि य णं पारणं सि' यहां तकका पाठ ग्रहण किया गया है-इसका अर्थ इस प्रकार સંબંધીઓ અને પરિજનને બોલાવીશ અને ચાર પ્રકારના વિપુલ આહારથી તેમને જમાડીશ. જમાડ્યા પછી પાન, વસ્ત્ર, સુગંધી દ્રવ્ય માળાઓ અને અલંકારોથી તેમને સત્કાર કરીશ. ત્યાર બાદ તે સૌની સમક્ષ માં ચેષ્ઠ પુત્રને કુટુંબની જવાબદારી सपी यारा ते सोना माज्ञा evn "चउप्पुडयं दारुमयं पडिप्गहिये यार मानital ४४पात्रने "सयमेव गहाय"भारी हुएशन "मुंडेभवित्ता" भाथे भूडा रावाने "दाणामाए पन्चजाए पन्चइए" हानामा नया भर ४शश. "पव्वइए वि समाणे तं चेव" या नहु पर मालतपस्वी ताभलाना भीक्षापर्यायन पासन शश. महीने "जाव" ५६ मा०यु छ तेना द्वारा "इमं एयारूवं अभिग्ग" थाशन "छद्रस्स विय णं पारणंसि" સુધીને સૂત્રપાઠ ગ્રહણ કરવાને છે. તે સૂત્રપાઠ સારાંશ નીચે પ્રમાણે છે.
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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