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________________ - - ३४४ भगवती रोमिः-सह विहाँ समर्थ न सन्ति 'सेम' अग सल किन्तु 'तो' का तस्मात् सौधर्मफल्पात् 'परिनिरतंति' प्रविनिवर्तन्ते परावर्तन्ते 'तो परिनिक सिता प्रतिनिरप गति अत्र निनस्थाने मागन्ति 'जा' यदि खल कदाचित 'तामो अनछरामों' ता:- अपारस: 'आदारांति' आदि यन्ते समादरं कुर्वन्ति परियाणति ' परिजानन्ति तान् स्वामित्वेनानीकर्ष न्ति वदा ‘पणं' ममरः खलु-समर्याः किल भवन्ति ते असुरकुमारा देशः 'ताहिं अच्छराठिं' तामिः अप्सरोमिः 'सदि' सार्थम् 'दिनाई दिव्यान भोगने के लिये समर्थ नहीं होते है 'से' किन्तु 'तो' उस सौ धर्मफल्प से जय 'पडिनियतंति' चे लौटते है और 'पडिनियतिता' लौटकर 'इहमागच्छति' अपने स्थान पर आने लगते है 'जाणं तामा तो वे 'अच्छराओ' अप्सराएँ यदि कदाचित 'आहायंति' उनका आदर सत्कार फरं, 'परियाणंति' और उन्हें अपने स्वामीरूप से स्वाकार करें 'ते असुरकुमारा देवा' तप घे असुरकुमार देव 'ताहिं अच्छा सद्धि उन धमानिक देवाकी अङ्गनाओंके साथ दिव्वाइं भोगभागार भुजमाणा विहरित्तए पभूणं' दिव्य भोगने योग्य भोगोको भागनक लिये समर्थ हो सकते है । हठसे जयदस्तीसे नहीं । 'अहणं' और यदि 'ताओ अच्छराओ' वे अप्सराएँ 'नो आढायति उन्हें आदरका दृष्टिसे नहीं देखें 'णो परियाणंति ' अपने स्वामीरूप से उन्हें नहा स्वीकार करें तो 'ते' वे 'असुरकुमारा देवा' असरकमार देव 'ताए अच्छराहिं सद्धि' उन अप्सराओं के साथ 'दिव्चाई दिव्य 'भोगभोगाइ' नया. "से" पy " ओ पडिनियति" न्यारे तसा ते सौधर्म ८५मार पाछ ५२ता खाय छ. "पडिनियत्तिता इहमागच्छंति" म पाछ शन पाता स्थान ori 4 छ त्यारे "जणं ताओ अच्छराओ पाढायंति" न त । नामा तमन। माइ२ ४२, "परियाणति भने भनी पोताना स्वाभी ३३ श्वास ४२ तो "ते असुरकुमार देवा" a ससुरशुभा२ देवो "ताहिं अच्छराहि सद्धि" तानि वानी मसरामा साथे "दिवाई भोगभोगाई भुजमाणा विहार त्तिए पभ"हिन्य, लोसा योग्य सामान पो पाने समर्थ मनी छ पर समयी तम्मा ते ४॥ शता नथी. " अहणं ताओ अच्छराओ" aa असा "नो आढायति" तेभने मा६२नी या नहीं, "नो परि न भने भने स्वामी तरी स्वारे नही तो "ते असरकमारः देवा" ते असुभा२ वो "ताहिं अच्छराहि सद्धि" ते मसरामानी साथ दिव्या देवा.
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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