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________________ म. टी. श. ३ उ. १ सू.२९ सनत्कुमारस्य भवसिध्यादिप्रश्नस्वरूपनिरूपणम् ३०७ कुत्र - उत्पत्स्यते, उत्पन्नो भविष्यति । यावत्करणात् आयुः क्षयेण - आयुष्कर्म दलिकनिर्जरणेन, भक्षयेण - देवभवनिबन्धनकर्मणा निर्जरणेन, स्थितिक्षयेण - आयुः कर्मणः स्थितेर्वेदनेन कुत्र गमिष्यति ? 'गोयमा ।' हे गौतम! 'महाविदेदे बासे' महाविदेहे वर्षे महाविदेहक्षेत्रे 'सिज्झिदि ' सेत्स्यति सिद्धो भविष्यति सकलकर्म राहित्येन कृतकृत्यो भविष्यति 'जाब - अंतं करेदिइ ' यावत् अन्तंकरिष्यति । यावत् करणात् 'बुज्झिहि मुचिहि परिनिव्बाहि सव्वदुखाणं' इति संग्रहः । अन्ते वायुभूतिः भगवतो वाक्यं प्रामाणिकत्वेन उपसंहरति - सेवं भंते ! सेवं भंते ! इति । तदेवं भगवन तदेवं भगवन् इति । हे भगवन ! भवता यत् प्रतिपादितम् तत् सर्वम् एवं पूर्वोक्तरूपं सत्यमेव नतु तद्विपरीतम् । शास्त्रकारः पूर्वोक्तार्थसंग्रहार्थे गाथाद्वयीमाह - ' छठ हम मासो' इत्यादि । निर्जराका होना इसका नाम भवक्षय है और आयुःकर्मकी स्थितिका वेदन होना इसका नाम स्थितिक्षय है । इसका उत्तर देते हुए प्रभु उनसे कहते हैं - 'गोयमा !' हे गौतम ! 'महाविदेहे वासे सिज्झहिह' महाविदेह क्षेत्र में वे सीद्ध सकल कर्मोंसे रहित होते हुए कृतकृत्य होंगे'जाव अंतं करेहिह' यावत् समस्त दुःखोंका अन्त करेंगे, अन्तमें वायुभूति प्रभुके वाक्यका प्रामाणिक होनेके कारण उपसंहार करते है 'सेव भंते ! सेवं भंते !" हे भदन्त ! आपने जो प्रतिपादित किया है वह सब ऐसा ही पूर्वोक्तरूपवाला ही है अर्थात् सत्य ही है उससे विपरीत नहीं है। अब शास्त्रकार इन दो गाथाओं द्वारा उद्देशक कथित विषयका संग्रह करते हुए इस उद्देशकको समाप्त करते है-छट्टम इत्यादि દેવભવના કારણરૂપ કર્મોની નિર્જરા થવી તેનું નામ ભવક્ષય છે, અને યુકની સ્થિતિનું વેદન કરવું તેનું નામ સ્થિતિ ક્ષય છે. उत्तर- " गोयमा !" हे गौतम! तेभनी स्थिति सात सागशेपभनी उही छे. तेथे त्यांथी व्यवीने "महाविदेहे वासे सिज्झहिइ" महाविद्वेड क्षेत्रमां मनुष्यगतिभां उत्पन्न थर्धने सिद्धयः यामथे "जाब अंत करेड़" तेथे समस्त भेनि क्षय उरीने કૃતકૃત્ય થઈ જશે અને સમસ્ત દુ:ખાના અંતકર્તા થશે. “ सेवं भंते! सेवं भंते " मा हो द्वारा वायुभूति गथुधर भगवानना अथનમાં પેાતાની અપાર શ્રદ્ધા પ્રકટ કરે છે. તેઓ કહે છે, “ હે ભદન્ત ! આપની વાત તદ્ન સત્ય છે. આપની વાત યથાય છે. તેમાં શંકાને સ્થાન જ નથી.” आा उद्देशउने भत्ते आपेक्षी "छट्ट छट्टम इत्याहि" मे गाथाओ द्वारा सूत्रडारे
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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