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________________ म. टीका श० ३ उ. १ सू.२४ देवकृत तामलेः शरीरविडम्बनानिरूपणम् २४५ धान्याः मध्य मध्येन निर्गच्छन्ति, तया उत्कृष्ट्या, यावत् यत्रैव भारतं वम् यत्रैव ताम्रलिप्ती नगरी, यत्रैव तामले: बालतपस्विनः शरीरकम्, तत्रैव उपागच्छन्ति, उपागत्य वामं पादं शुम्बेन बध्नन्ति, त्रिकृत्वो मुखे अवष्टीव्यन्ति अवष्ठीव्य ताम्रलिप्त्याः नगर्याः शृङ्गाटक- त्रिकचतुष्क - चत्वर - चतुर्मुख महापथेषु आकर्षत्रिकर्षिकाम् कुर्वन्तो महता महता शब्देन उद्घोषयन्तः उदघोषयन्तः देवेन्द्र की पर्याय से उत्पन्न हुआ देखकर (आसुरत्ता कुविया) बहुत ही अधिक क्रुध हुएकुपित हुए (चंडिकिया) और रौद्ररूप से संपन्न बनकर (मिसमिसेमाणा बलिचं चारायहाणीए) क्रोधरूपी ज्वाला से जलते हुए वे बलिचचाराजधानी के (मज्झ मज्झेणं) ठीक बीचोंबीच से होकर (निगच्छति ) निकले । (ताए उट्टियाए जाव जेणेव ) सो साधारण चाल से नहीं निकलते किन्तु उसी उत्कृष्ट आदि विशेपणों वाली गति से निकले और निकल कर यावत् जहां (भारहेवासे जेणेव ताम्रलिप्ती नयरी जेणेव तामलिस्स बाल तवस्सिस्स सरीरए) भारतवर्ष था उसमें भी जहां तामलिप्ती नगरी थी और उसमें भी जहां बालतपस्वी तामली का शरीर पडा हुआ था (तेणेव उवागच्छंति) वहां पर आये । (वामे पाए सुवेण बंधंति) वहाँ आकर उन्होंने तामलि के शव के वायें पैर में रस्सी बांधी (तिक्खुतो मुहे उर्दुहति) बाद में उसके मुख में तीनवार थूका (तामलितीए नगरीए सिंघाडग-तिग- चउक्क चच्चर - चउम्मुह महापहेतु आकविकट्ठ-ना कुविया) ते वात लगीने तेभना अपना पार न रह्यो, (चडिकिया) तेथे रौद्र३५ धार ने (मिसमिसेमाणा वलिचंचा रायहाणीए ) शेध३यी भवासाथी ४• सता-हांत अध्यावता, जसिया रामधानीना (मज्झ मज्झेण ) णरामर मध्यभार्गेथा ( निग्गच्छंति) पडया (ताए उकिट्टयाए जाव जेणेव भारहे वासे जेणेव तामलित्ती नयरी जेणेव तामलिस्स वालतवस्सिस्स सरीरए) आगण वर्षाव्या भुમની ઉત્કૃષ્ટ આદિ વિશેષણાવાળી દેવગતિથી તે જ ખૂદ્રીપમાં આવેલા ભારતવની ताभलिप्ती नगरी पासे नयां णासतपस्वी तामसीनुं भृतशरीर पड्यु तु (तेणेत्र उवागच्छंति) त्यां पय्या. त्यांने तेभो (वामे पाए सुबेण वंधति) ताभसीना शमना हाम्रा भगने होरी वडे यांध्या. (तिक्खुतो मुहे उहुहंति) त्यामाह तेथे । तेना भुभां त्रवार थूया. [तामलित्तीए नयरीए सिंघाडग-तिग- चउक्क चश्चर चउम्मुह, महापद्देसु आकट विकट्ठि करेमाणा महया महया सद्देणं उग्घोसेमाणा
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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