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________________ २२२ भगवती श्रेयः खलु अस्माकम् देवानुमियाः । तामलि बालतपस्विनम् बलिभायात् राजधान्यां स्थितिप्रकल्पं मकारयितुम् इनिकृत्वा अन्योन्यस्य अन्तिके इम अर्थम् मतिशृण्वन्ति, बलिचमाराजधान्याः मध्यमध्येन निर्गच्छन्ति, येनैव रूपकेन्द्रः उत्पाठपर्वतः तेनैव उपागच्छन्ति, उपागम्य क्रियसमुद्घातेन समचघ्नन्ति यावत् उत्तवैक्रियाणि रूपाणि विकुर्वन्ति, तथा उत्कृष्टपा, लतिया, (भत्तपाणपडियाइक्लिए पाओवगमणं णिवणे) भगवान का प्रत्याख्यान करके पादपोपगमन संधारा धारण किये हुए है (तं सेयं खलु अहं देवाणुप्पिया । तामलि बालतवसि बलिचचाए रामहाणीए ठि पकरावेत ति कट्टु अण्णामण्णस्स अंतिम एयमहं पडिसुर्णेति) तो अपने लिये यह श्रेयस्कर है कि हे देवानुप्रियो ! अपन सब उसे बलिचंचा राजधानी में इन्द्ररूपसे आने का संकल्प करावें, इस प्रकार से विचार करके उनलोगोंने अपनी इस विचारधारा को आपस में एक दूसरे से पक्की कराली (बलिचंचारापहाणीए मज्झ मज्झेणं निगच्छेति ) तब फिर वे सब के सब बलिचंचाराजधानी के ठीक बीचोंबीच के मार्ग से होकर निकले। और निकलकर वे ( जेजेव रुपगंदे उपायपच्चए तेणेव उपागच्छति ) जहोपर रुचकेन्द्र उत्पाद पर्वत था वहां पर आये । (उवागच्छित्ता) वहां आकर के उन्होंने ( वेविवयसमुग्धा एणं) वैक्रिय समुद्धात से ( समोहणंति ) अपने आपको युक्त किया ( जाव उत्तर वेउव्धिधाई रुवाइ विकुव्वंति ) ग्राइक्खिए पाओवगमणं णिवण्णे) यारे प्रहारना आहारनो त्याग ने पाहयोयगमन संथारा धार! ईदै छ (ते सेयं खलु अहं देवाशुपिया ! तामलि बालतवसि वलिचंचाए रायहाणीए ठियं पकरावेत्तए तिकडु अण्णमण्णस्स अंतिए एयमहं पडसुर्णेति ) तो हे देवानुप्रियो ! आप श्रेय तेमां छे આપણે સૌ મળીને અલિચ્ચા રાજધાનીમાં ઇન્દ્રરૂપે ઉત્પન્ન થવાનું નિયાણુ તેની પાસે ધાવીયે. અંદરો અંદર વિચારોની આપ લે કરીને તે અસુરકુમારાખે તે પ્રકારને या निश्चय श्री सीधे ( बलिचंचा रायहाणीए मज्झं मज्झेणं निग्गच्छंति ) આ પ્રકારના સંકલ્પ કરીને તેઓ બધાં લિચચા રોજધાનીના વચ્ચેના માત્રથી नी४ज्या. त्यांथी नीडजीने तेथे ( जेणेव रुपगिंदे उप्पायपव्त्रए तेणेव उवागच्छति ) क्त्यां रुथन्द्र नामनो उत्पात पर्वत तो त्यां याव्या. ( उवागच्छित्ता) cui zuida axê (#zfaqqaganqui) álku ayudel (nicoifa) तेमनी लाने युक्त ४२. ( जाव उत्तरवेउन्नियाई कंवाई विकुव्वंति ) उत्तर रे
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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