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________________ अमेयचन्द्रिका टीका श. ३ उ. १ स. २१ तामलीकतपादपोपगमनम् २०९ इत्यादि । ततः नियमपूर्वकं प्राणामिकीमवज्याग्रहणानन्तरम्, खल्ल निश्चयेन स पूर्वोक्तरूपः तामलिः 'मोरयपुत्ते' मौर्यपुत्रः 'तेणं ओरालेणं' वेन उदारेण प्रधानेन 'विपुलेणं' विपुलेन प्रभूनतरेग बहुकालनिष्पायेन पयत्तेणे' प्रयत्नेन महता यत्नेन 'पागहिएणं' प्रगृहीतेन उत्कृष्टभावनया समादृतेन 'यालतवाकम्मेणं' बालतपःकर्मणा 'सुक्के' शुष्कः 'लुक्खे' रूक्षः 'जाव-धमणिसंतए' यावत्-धमनीसन्ततः, धमनीभिः नाडीभिः संततः व्याप्त वाद्याभ्यन्तरम् धमनी मात्रावशिष्टः अत्यन्तलः 'जाए याविहोत्या' जातथाप्यभवत् सनात इत्यर्थ, 'भुक्खे निम्मंसे निस्सोणिए फिडिकिडियाभूए, अहिचम्मावणदे किसे' बुभुक्षितः, निर्मासः निःशोणितः किटिकिटिकाभूतः अस्थिवर्मावनद्धः कृशः इति यावच्छन्देन संगृह्यते तत्र शुष्कः नीरसशरीरत्वात्, कक्षा नियमपूर्वक प्राणामिकी प्रवज्या ग्रहण के बाद से तामली मोरियपुत्त' पूर्वोक्तरूपवाला वह तामलि मौर्यपुत्र 'तेणं ओरालेणं' उस उदार प्रधान, 'विउलेणं' बहुतकालतक निष्पाद्य होनेसे प्रभूततर 'पयत्तण' यडे प्रयत्न से 'पग्गहिएणं' स्वीकृतधारण किये गये, एसे 'वालतयोकम्मेणं' बालतपः कर्मके सेवन करनेसे 'सुक्के' चिलकुल सूख गया 'लुक्खे' रूक्ष हो गया 'जाव धमणिसंतएजाए यावि होत्था' यावत् उसके शरीर की एक एक नश बाहिर निकल आई अर्थात् भीतर बाहरमें वह धमनी(नाडी)मात्र अवशिष्ट रहीं, खून मांस उसके शरीरमें बिलकुल नहीं रहा, बिलकुल दुर्बल हो गया, यहां जो 'जाव' शब्द आया है उससे 'भुक्खे, निम्से, निस्सोणिए, किडि किडियाभूए, अद्विचम्मावणद्ध किसे' इस पाठ का संग्रह किया गया है। शरीर पति सुशाथी यु४त मेवो ते भौयापन तामात "तेणं ओरालेण" ते २ प्रधान, "विउलेण" ugl suथा न्यास सापाथा विya, “पयत्तेण" घरा प्रय. नयी "पग्गहिएणं" मेनु मनुष्४ान ४२पामा मातु तुमेवा "वालतको फम्मेणं" पात: मना सेवनया "मुक्के" Mege सू.गया " लूक्खे" तन रोक्ष (सूमा uati) थy गया, "जाय धमणिसंतए जाए यावि होत्था" तमना શરીરની એકે એક નસ બહાર દેખાવા લાગી. તેમના શરીરમાં રકત, માંસ આદિ નહીં રહેવાથી શરીર એટલું બધું દુર્બળ થઈ ગયું કે તેમની નસો દેખાવા લાગી. मडारे "जावः (44-1)" श ाव्य छ तेया नायना सूत्रपा राय . "भुक्खे, निम्मंसे, निरसोगिए, किडि किडियाभूए, अद्विचम्मावणद्धे किसे"
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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