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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ३. उ. १ सू. २१ तामलीकृतपादपोपगमनम् २०७ संगतिकांश्च आपछच ताम्रलिप्त्या नगर्याः मध्यं मध्येन निर्गत्य पादुकाम कुण्डिकादिकम्, उपकरणम्, दारुमयश्च प्रतिग्रहकम्, एकान्ते एडयित्वा ताम्रलिप्तीनगर्याः उत्तरपोरस्त्ये दिग्मागे निर्वतकं मण्डलकम् आलिख्य संलेखना-जूपणापितस्य भक्त-पान प्रत्याख्यानस्य, पादपोपगतस्य, कालम् हुई है ऐसे पुरुषों से, (पासंडत्थे य) पावडस्थ पुरुपों से (गिहस्थे य). गृहस्थ पुरुपों से (पुन्चसंगइएय) पूर्वके परिचित पुरुपोंसे (पच्छा संगा इए य) पश्चात् के परिचित पुरुपों से (पन्जायसंगइए य) समानकालमें प्रव्रज्या पर्यायसे युक्त पुरुपोंसे (आपुच्छित्ता) पूछकर (तामलित्तीए नयरीए मज्झं मज्झेणं निग्गच्छित्ता) ताम्रलिप्त नगरीके ठीक बीचों वीचसे निकल कर (पाडगं) पादुकाओंको (कुंडियामादीय उवगरणं) कुण्डिका आदि उपकरणोंको (दारुमयं च पडिग्गहियं एगंते अडित्ता) और दारुमय पात्रों को एकान्त में रखकर (तामलित्तीए नयरीए उत्तर पुरस्थिमे दिसिभाए) ताम्रलिप्ती नगरी के ईशानकोणमें (नियत्तणिय मंडलं आलिहित्था संलेहणा जूसणा जूसियस्स भत्तपाणपडियाइक्खि. यस्स पाओवगयस्स कालं अणवकखमाणस्स विहरित्तए) निर्वर्तनिक मंडल मांडकर सल्लेखना तप द्वारा आत्माका शोधन करते हुए चारों प्रकार के आहार का परित्याग कर पादपोपगमन संथारा धारण करके स्थेय) (विशिष्ट धने पार ४२नार) पुरुषान, (गिहस्ये य) डस्थ पुरुषाने, (पुच्चसंगइए य) व परिशित पुरुषान, (पच्छा संगाइएय) पाथी नगी साथपश्यिय यो छ मेवा व्यतियोन, (पज्जायसंगइएय) तथा समालिन प्रवनयाधारी यतिमाने (आपुच्छित्ता) पूछी - पायाभन था। अडय ४२पानी भारी ४२छ। तेमनी पासे व्यत श. (तामलित्तिए नयरीए मज्झं मज्झेणं निगच्छित्ता) त्या२ ६ तालिप्ती नगरीनी श्यथा नाजीने (पाउगं कुंडीयामादीय उवगरण) पाहायो, अन्तिमा ५४२२, (दारुमयं च पडिग्गहियं एगंते एडित्ता) तथा निर्मित पात्रो मेन्त स्थाने भूटीन (तामलित्तीए नयरीये उत्तरपुरस्थिमे दिसिभाए) ताम्रलिप्ती नगरीन नआमा (नियत्तणियं मंडलं आलिहित्था संलेहणा-जूमणा जृसियम्म भतपाणपडियाइक्खियम्स पाओवगयस्स कालं अणवकंखमाणम्स वितरित्तए) ३माथा क्षेत्र प्रभारनी भा। सामान લેખના તપ (સંથાર() દ્વારા આત્માની શુદ્ધિ કરીશ. ચારે પ્રકારના આહારને પરિત્યાગ કરીને, પાદપિપગમન સંથારે કરીને હું બિલકુલ નિષ્ક્રિય બની જઈશ.
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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