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________________ - - . - . -. प्रमेंयचन्टिकाटीका श.३उ.१ ईशानेन्द्रस्य देवदर्यादिप्राप्तिकारणनिरूपणम् १८३ दारता-गम्भीरतादिरूपया दीप्त्या च सम्पन्नो निर्यातस्थानस्थानीयया सदा. चाग्मर्यादापालनादिरूपया बहुजनम्याऽपरिभूततया अपराजिततया च सम्पन्नः समुज्ज्वलतीति हेतुताऽवच्छेदकधर्मस्याऽऽढयता-दीप्त्यपरिभूतना-एतत्रितय. निप्ठस्यैकस्य सत्यान्न तृणारणिमणिन्यायेन प्रत्यक्षाऽनुमानाऽऽगमशन्देषु प्रामाण्यमिव प्रत्येकं हेतुता अपितु समुदाये प्रदीपवदेव । "होत्या" आसीत् 'तपणं' ततस्नदनन्तरं 'तस्स' तस्य 'मोरिंगपुत्तम्स' मायपुत्रस्य 'तामलित्तस्स' ताम्रलिप्तस्य, 'गाहावइस्स' गायापतेः 'अन्नया' अन्यदा कियाई' कदाचित् 'पुन्चरत्ता वरत्तकालसमयसि' पूर्वरात्राऽपररात्रकालसमये रात्रिपश्चिममागे 'कुटुंबजागरियं' कुटुम्बनागरिकां कुटुम्बजागरणाम् ‘जागरमाणस्स ' जाग्रतः जागरणां कुर्वतः 'इमेयावे' अयमेतावद्रूपः वक्ष्यमाण स्वरूपः 'अज्झथिए' आध्यात्मिकः आत्मसम्बन्धी संकल्पः विचारः 'नाव' यावत् 'समुपजित्या' समुदपधत, समुहै-इसी तरह से यह भी तैल और बत्ती के जैसी आढयता से नमृद्धि से गवं शिखास्थानीय उदारता, गंभीरता आदि रूप दीप्ति से सम्पन्न हुआ निर्वातस्थानीय सदाचार मर्यादा के पालन आदि रूप बहुजन अपरिभूतता से अपराजितता से चमकता रहता था। 'तएणं तस्स मोरियपुत्तस्स' उस मौर्यपुत्र 'तामलित्तस्स' नाम्रलिप्त 'गाहावहस्स' गाथापति के चित्त में 'अन्नया कयाई किसी एक समय "पुचरत्तावरत्तकालसमयंसि' पूर्वरान अपररात्र कालसमय में अर्थात रात्रिके पश्चिमभाग में 'कुटुंय जागरिकां' कुटुम्ब जागरणा करते हुवे 'इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुपन्जित्था' यह इस प्रकार का आत्मा में उत्पन्न होने के कारण आत्मसंबंधी संकल्प-विचार यावत् આદરૂપ તિ (દીપ્તિ]થી યુકત તે તાલિમ, સુરક્ષિત નિત સ્થાનરૂપ સદાચાર, મર્યાદાપાલન આદિ ગુણે વડે, ઘણા લોકો સામે પણ અપરાજિત રહેતે હતો – તેના शुशाया यभरते। ने "तएणंतस्स मोरियपुत्तस्स तामलित्तस्स गाहावइस्स" ते भीय पुत्र, माथापति तामलितांना मनमा "अन्नया कयाई छ मे समय "पुव्यरत्तावरत्तकालसमयंसि" “पूर्वसन अ५२२ समये" मेटर बिना ॥ ५डारे “कुटुंबजागरिकां" मुटु २ ४२ती जाये "इमेयारूवे अज्झथिए जाच समुपन्जित्था" मारना आध्यात्मिा विद्यार भाव्या. ते विचार गामामi Bua थये तो भाटे तेने माध्यामि ही छे. मी 'जाव' पहथी નીચને સૂત્રપાઠ ગ્રહણ કરાવે છે–
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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