SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 268
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७४ भगवती विपुलेन अशन-पान खाद्यस्त्राधेन गन्धमाल्या-लङ्कारेण च सत्कार्य, सन्मा न्य तस्यैव मित्र - शाति-निजक-सम्बन्धि- परिजनस्य पुरतो ज्येष्ठपुत्र कुटुम्बे स्थापयित्वा तं मित्र-शाति-निजक सम्बन्धि परिजनम्, ज्येष्ठपुत्रञ्च आपृष्छ, डावेत्ता मित्तणाद-नियम-संयण-संबंधि-परियणं आमंतेसा स्वयं अपने आप ही दाम्मय प्रतिमह पात्र पनवाकर, तथा विपुल अशन, पान, खादिम स्वादिम चारों प्रकार के आहार को तैयार कराकर मित्र, ज्ञातिजन स्वजन संबंधी परिजन आदि सब को आ मंत्रित करूंगा और आमंत्रित करके (तं मित्तणाह-नियग-संबंधिपरियणं विजलेणं असपापाणखाहमसाहमेणं वत्थगंध मल्लाकारेण व सकारेत्ता) उस तैयार किये गये विपुल अशन पान खादिम चारों प्रकार के आहार से तथा वत्र गंधमात्य एवं अलंकार से मित्र, ज्ञाति, निजपरिवार के जन, संबंधि और परिजन इन सबका सत्कार करूंगा, सत्कार करके ( सम्माणेता) सन्मान करुंगा | सन्मान करके (तस्सेव मित्तणाणियग संबंधिपरियणस्स पुरओ) फिर मै उन्हीं मित्र, ज्ञाति, निजक संबंधी परिजनों के समक्ष (जेव पुत्तं कु. हुंबे ठावेत्ता ) ज्येष्ठपुत्र को कुटुम्ब की रक्षाका भार में नियोजित करके अर्थात् उसे कुटुम्बकी रक्षा आदिका उत्तरदायित्व सौंप करके (तं मित्तणाइ - घिग-संबंधी परियणं जेट्ठ पुत्तंच आपुच्छित्ता एवं अपने उन मित्र, ज्ञाति, निजक, संबंधी परिजनों से तथा ज्येष्ठ मित्तणाइनियगसयण संबंधिपरियणं आमंतेत्ता ) મારી ાતે જ કાષ્ઠના (લાકડ;નાં) પાત્રાં અનાવરાવીશ, તથા મેઢા પ્રમાણમાં ખાન, પાન આદિ ચારે પ્રકારના આહાર તૈયાર કરાવીને મિત્રો, જ્ઞાતિજના, સ્વજન, પરિન વગેરે સૌને निमंत्रण आाधीश. (तं मित्तणाइ, णियग, संधिपरियणं विउलेणं असणा खाइमसाइमेणं चत्थगंध मल्ललकारेण य सकारेता) ते तैयार वामां आवेला વિપુલ ખાન, પાન, ખાદિમ અને સ્વાદિમથી તથા વસ્ત્રોથી, સુગંધી દ્રવ્યેથી, અને અલંકારથી આત્રિત મિત્રા, જ્ઞાતિજના, સ્વજના અને પરિનેાના સત્કાર કરીશ ( सम्माता) तेभनुं सन्मान उरीश. सन्मान अरीने ( तस्सेव मित्तणाइणियग संधि परियणस्स पुरओ जेद्वं पुत्तं कुटुंबे ठावेत्ता) मित्रो, ज्ञातिन्ना, स्व અને પરિજના સમક્ષ મારા જ્યેષ્ઠ પુત્રને કુટુ ખરક્ષાની (तं मित्तणा - संबंधि परियणं जेहूपुनं च आपुच्छित्ता) ज्ञातिनी, स्वननो, परिन् भने न्येष्ठ पुत्री र सहने જવાબદારી સોંપીશ पछी ते मित्रो, सयमेव दारुमयं
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy