SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 266
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवत रक्तरत्नसत्सारस्वापतेयेन अतीव अतीय अभिवर्षे, नव् किम् अहं पुरा पुराणानां गुचीर्णानाम्, योगत् कृतानामू, कर्मणाम् एकान्नशः क्षयम् उपेक्षमाणो विहरामि तद्यावत्तावत् अहं हिरण्येन व गावत- अतीव अतीव अभिवर्षे, कणग-रयण-मणि- मोत्तिय-मंग्ल-सिलप्पवालस्त- रयण संतमार सावएज्जेणं अई अईन अभिवामि इसीसे में हिरण्य चांदी से पढ रहा हूँ, सुवर्ण से बढ रहा हूं, धनसे यह रहा हैं, धान्य अनाजसे वह रहा हूं, पुत्रोंसे पढ रहा हूं, पशुओंसे गाय भैस आदिसे बढ रहा हूं, इस तरह मैं विपुल धन से, कनक से रजतसे मणिसे मौक्तिक से. शेख से, चन्द्रकान्त आदि मणियों से प्रचाल से, तथा सत्सार चाले धन से खूब२ बढ रहा हूं । ( तं किं णं अहं पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं जाच कडाणं कम्माणं एगंत सोखयं उवेहमाणे विहरामि ) इस तरह पूर्वोपार्जित शुभकर्मों के उदय से मुझ पर लक्ष्मी देवी आदि की हर तरह से कृपा बनी हुई है, अतः ऐसी स्थिति में क्या मैं पूर्वकृत उन सुन्दररूप से आचरित किये गये यावत् कृत शुभकर्मो का एकाततः विनाश उपेक्षित कर सकता हूँ अर्थात् नहींकर सकता हूं तात्पर्य कहने का यह है कि मैं इतने प्राप्त इस वैभवसुख में संतुष्ट चनारह कर भविष्यत्काल संबंधी सुख प्राप्ति के प्रति उदासीन बनजाउं यह मुझे कथमपि उचित नहीं है । (तं जाव ताव अहं हिरविपुल धण - कणग- रयण-मणि- मोत्तिय - संख - सिलप्पवालर तरयण संतसार सावज्जेणं अई अईव अभिवामि ) तेथी भारे त्यां डिश्एयना तथा सुवानी વધારા થયા કરે છે, ધન અને ધાન્યને વધારા થયા કરે છે, પુત્રા વધતા જાય છે, ગાય, બળદ આદિ પશુએની સખ્યા પણ વધી રહી છે, એજ રીતે મારે ત્યાં ધન, उन, थांही, भणि, भोती, शरण, बन्दान्त आहि भगियो, परवाणां वगेरे अतिशय भूस्यवन धननी वृद्धि थर्ध रही छे. (तं किं णं अहं पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं जान कडाणं कम्माणं एगंतसोखयं उवेदमाणे विहरामि ) रीते पूर्वोपार्जित શુભ કર્મોનાં ઉદયથી મારા પર લક્ષ્મીદેવી આદિની કૃપા થઇ છે. તો શુ પૂર્વક્રુત સુદર રીતે આચરેલાં, અને શુભવિષાકવાળા તે શુભકર્માના વિનાશની ઉપેક્ષા કરવી તે ચેાગ્ય છે! કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે અત્યારે મરલા સુખવૈભવથી સંતાય પામીને ભાષ્યના સુખ પ્રત્યે ઉદાસીનતા રાખવી તે મને Àાલતુ નથી. (તું બાષ તાવ અરૂં १७२
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy