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________________ १.६२ भगवती 'तम् महावीर' ''द' बन्दते, 'नमंस' नमस्यति, 'बंदित्ता नमसित्ता' वन्दिला नमस्थित्वा 'एव" वक्ष्यमाणप्रकारेण 'वयासी' अवादीत् 'अहो ??? णं भंते ?" हे भगवन् ! अहो महदाश्रयै खलु 'ईसाणे' ईशानः 'देविदे' देवेन्द्रः 'देवराया' देवराजः 'महिडीए' महर्द्धिकः महर्द्धिशाली वर्तते । 'ईगाणस्स णं भंते । ईशानस्य खल भदन्त ! 'दिव्या' दिव्या 'देव' देवर्दिः 'कहि' कुत्र ' गया' गता, 'कहि' कुत्र 'अणुपविट्ठा !" अनुप्रविष्टा ? इति मरनः । भगवान् उत्तरयति'गोयमा ! शरीर ं गया' त्ति । हे गौतम! वायुभूते । सा वैक्रियक्रियोद्भूता दिव्यदेवर्द्धिः शरीरं गता वैक्रियक्रिया मतिसंहरणद्वारा निजारीरमनुमष्टा इत्यर्थः ।गौतमने प्रभुसे ऐसा पूछा- कि 'जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसिं पडिगए' हे भदन्त ! वह ईशानेन्द्र जिस दिशासे जिस रूपमें पकट हुआ था उसी दिशाकी ओर उसी रूपमें चला गया है। तात्पर्य कहने का यह है कि ईशानेन्द्रकी पूर्ववर्णित दिव्य देवद्धि का अवलोकन कर गौतमने प्रभुसे पूछा कि 'हे भदंत ! यह बडे आश्चर्य की बात है जो देवेन्द्र देवराज ईशान इतनी बडी ऋद्धिवाला हैं- परन्तु Best यह ऋद्धि कहां पर चली गई ? कहाँ पर समा गई ? तय भगवानने उन्हें समझाया 'गोयमा ।' गौतम | ईशान इन्द्रकी वह दिव्य देवर्द्धि उसके शरीर में ही ममा गई है । ईशानेन्द्रने जो अभी २ ऋद्धि दिखलाई थी वह वैक्रिय क्रिया द्वारा उसने प्रकट की थी, वैक्रिय क्रियाका उसने अब संहरण कर लिया है सो एकही क्षणमें उसकी दिव्य वह ऋद्धि भी संहत हो गई है- अर्थात् जिस शरीरसे यह sere विक्रिया क्रिया द्वारा हुई थी उसीमें यह प्रविष्ट हो गई है। महर्द्धि भ्यां समाई ग ? " जामेव दिर्सि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए " ભદન્ત ! ઇશાનેન્દ્ર જે દિશામાંથી પ્રકટ થયેા હતા એ જ દિશામાં અદ્રશ્ય થઈ ગયા ! હું ભગવાન ! તેની મદ્ધિ કર્યાં ચાલી ગઈ? કયાં સમાઈ ગઈ ? ત્યારે ભગવાન गौतम स्वाभीने नवा माये हे "गोयमा !" हे गौतम ! ४शानेन्द्रनी ते हिव्य દેવિદ્ધ તેના શરીરમાં જ સમાઈ ગઈ. તેણે હમણાં જે દ્ધિ બતાવી હતી તે વૈક્રિય ક્રિયા દ્વારા પ્રકટ કરી હતી, હવે તેણે વૈક્રિય ક્રિયાનું સહરણ કરી લીધુ છે. તેથી એક ક્ષણમાં જ તેની તે દિવ્ય ઋદ્ધિ સતૃત થઈ છે. એટલે કે જે ચીરમાંથી વૈક્રિય ક્રિયા દ્વારા તે ઉત્પન્ન થઈ હતી, એજ શરીરમાં તે પાછી ચાલી ગઇ છે,
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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