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________________ ! १६२ भगवतीसूत्रे न्तम् महावीर' 'बंद' वन्दते, 'नमंसइ' नमस्यति, 'मंदित्ता नर्मसित्ता' वन्दिला नमस्त्विा 'एच' वक्ष्यमाणप्रकारेण 'क्यासी' अवादीत् 'अहो ??? णं भंते १ हे भगवन् ! अहो महदाश्रयै खलु 'ईसाणे' ईशानः 'देविदे' देवेन्द्रः 'देवराया' देवराजः 'महिडीए' महर्द्धिक: महर्द्धिशाली वर्तते । 'ईमाणस्स णं भंते ! ईशानस्य खलु भदन्त | 'दिव्या' दिव्या 'देव' देवर्दिः 'कहि' कुत्र ' गया' गता, 'कर्हि' कुत्र 'अणुपविद्या !' अनुमविष्टा ? इति मश्नः । भगवान् उत्तरयति'गोयमा ! शरीर' गया' त्ति । हे गौतम! वायुभूते ! सा वैक्रियक्रियोद्भूता दिव्यदेवर्द्धिः शरीरं गता वैक्रियक्रियामतिसंहरणद्वारा निजशरीरमनुमष्टा इत्यर्थः । गौतमने प्रभुसे ऐसा पूछा- कि 'जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसिं डिगए' हे भदन्त ! वह ईशानेन्द्र जिस दिशासे जिस रूपमें प्रकट हुआ था उसी दिशाकी ओर उसी रूपमें चला गया है । तात्पर्य कहने का यह है कि ईशानेन्द्रकी पूर्ववर्णित दिव्य देवद्विका अवलोकन कर गौतमने प्रभुसे पूछा कि 'हे भदंत ! यह वडे आश्चर्य की बात है जो देवेन्द्र देवराज ईशान इतनी बडी ऋद्धिवाला हैं- परन्तु उसकी पह ऋद्धि कहां पर चली गई ? कहाँ पर समा गई ? तब भगवानने उन्हें समझाया 'गोयमा !' गौतम ! ईशान इन्द्रकी वह दिव्य देवर्द्धि उसके शरीर में ही ममा गई है । ईशानेन्द्रने जो अभी २ ऋद्धि दिखलाई थी वह बैकिय क्रिया द्वारा उसने प्रकट की थी, वैक्रिय क्रियाका उसने अब संहरण कर लिया है सो एकही क्षणमें उसकी दिव्य वह ऋद्धि भी संहत हो गई है- अर्थात् जिस शरीरसे यह उत्पन्न विक्रिया किया द्वारा हुई थी उसीमें यह प्रविष्ट होगई है । महर्द्धि भ्यां समार्थ ग ? "जामेव दिसिं पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए" હે ભદન્ત ! ઈશાનેન્દ્ર જે દિશામાંથી પ્રકટ થયા હતા એ જ દિશામાં અદ્રશ્ય થ ગયે ! હું ભગવાન ! તેની મહદ્ધિ કર્યાં ચાલી ગઈ? કયાં સમાઈ ગઈ ? ત્યારે ભગવાન गौतम स्वाभीने वाम आये हे "जोयमा !" हे गौतम ! ४शानेन्द्रनी ते हिव्य દેવદ્ધિ તેના શરીરમાં જ સમાઇ ગઈ. તેણે હમણાં જે દ્ધિ ખતાવી હતી તે વૈક્રિય ક્રિયા દ્વારા પ્રકટ કરી હતી, હવે તેણે વૈક્રિય ક્રિયાનું સહરણ કરી લીધું છે. તેથી એક ક્ષણમાં જ તેની તે દિવ્ય ઋદ્ધિ સત થઇ છે. એટલે કે જે શરીરમાંથી વૈક્રિય ક્રિયા દ્વારા તે ઉત્પન્ન થઇ હતી, એજ શરીરમાં તે પાછી ચાલી ગઈ છે. M
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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