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________________ भगवती १५४ भो ? खलु भगवन् ! ईशानो देवेन्द्रः, देवराजो महर्दिकः, ईशानस्य भगवन् सा दिव्या देवर्द्धिः कुत्र गता, कृत्र अनुमविष्टा ? गौतम ! शरीरं गता, तत्केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते- शरीरं गता० १ गौतम ! तद्यथा नाम कूटाकार शरीरमनुप्रविष्टा शाला स्याद् द्विधा लिप्ता, गुप्ता, Taare faar fasतगम्भीरा, तस्याः कूटाकारशालाया दृष्टान्तो भणितव्यः ॥ मु० १७ ॥ प्रकार पूछा - ( अहो णं भंते! ईसाणे देविंदे देवराया महिडीए) हे भदन्त ! देवेन्द्र देवराज ईशान घड़ी भारी ऋद्धिवाला है (ईमाणस्स णं भंते । सा दिव्या देविट्टी कहिं गया कहि अणुपविट्ठा) हे भदन्त ! ईशानेन्द्रकी यह दिव्य देवर्द्धि कहां गई और कहां समागई हैं ? ( गोयमा । सरीरं गया) हे गौतम | ईशानेन्द्रकी यह दिव्य देवर्द्धि शरीरमें समा गई है । ( से केणणं एवं बुच्चइ - सरीरं गया) हे भदंत ! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं कि वह ईशानेन्द्रकी दिव्य देवर्द्धि उसके शरीर में समागई है ? (गोयमा ! से जहा नामए कूडागारसालासिया, दुह लिना गुत्ता गुचदुवारा, णियाया शिवाय गंभीरा, तीसेणं कूडागारसालाए दितो भागियो ) हे गौतम ! जैसे कोई एक कुटाकारशाला - शिखर के आकार जैसा- घर हो, और वह दोनों ओर से लिपा हुआ हो, गुप्त हो, गुप्त दरवाजेवाला हो, हवा उसमें न जाती हो, ऐसा यह हवा बिना का हो ऐसा कूटाकारशालाका दृष्टांत कहना चाहिये | अश्न पूछयो- (अहोणं भंते ! ईसाणे देविंदे देवराया महिड़ीए) के महन्त । हेवरान, हेवेन्द्र ईशान स्मारसी गधी भहान ऋद्धिवाणी छे ! (ईसाणस्स णं भंते सा दिव्वा देवी कर्हि गया का अणुपविट्ठा ?) डे लहन्तो शानेन्द्रनी ते महान देवद्धि (हेव समृद्धि) यां गध, समाएँ गए ? (गोयमा ! सरीरं गया !) हे गीतभा तेनी ते हेवद्धि तेना शरीरभां न सभा गई. (से केणट्टेणं एवं बुच्चइ सरीरं गया?) હે ભદન્ત ! આપ શા કારણે એવું કહેા છે કે ઈશાનેન્દ્રની દિવ્ય દેવદ્ધ તેના શરીરसमा गई ? (गोयमा ! से जहा नामए कूडागारसाला सिया, दुइओ लना गुत्ता गुत्तदुवारा, णिवाया णिवायगंभीरा, तीसेणं कूडागारसालाए दितो भाणियन्त्र) हे गौतम! धारा हैं ईटीअरशासा (शिरना मानु ઘર) છે. તે બન્ને તરફથી લીંપેલી હાય, ગુપ્ત હાય, ગુપ્ત દ્વારવાળી હાય, તેમાં હવા જઇ શકતી ન હોય. એવી હવા વિનાની ફૂલકારશાલાનું દૃષ્ટાંત આપવાથી આ વાત સમજાવી શકાય. માં જ
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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