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________________ ममेयचन्द्रिका टीका श.३ उ.१ ईशानेन्द्रस्य दिव्यदेवऋद्धिवर्णनम् १५१ नन्दननाम्नः 'चेइयाओ' चैत्यात्-उद्यानात् 'पडिनिकखमई' प्रतिनिष्कामति निःसरति, 'पडिनिकखमइत्ता' प्रतिनिष्कम्य, निःसृत्य 'बहिया जणवयविहारं' चहिः जनपदविहारं 'विहरई' विहरति ॥ सू० १६ ॥ ईशानेन्द्रस्य दिव्यदेवऋद्धिवर्णना प्रस्तावः । मूलम्-"तेणं कालेणं, तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था, वण्णओ जाव-परिसा पज्जुवासइ तेणं कालेणं, तेणं समएणं, ईसाणे देविंदे, देवराया, सूलपाणी, वसहवाहणे, उत्तरढलोगाहिबई, अट्ठावीसविमाणावाससयसहस्साहिबई, अ. रयंवरवत्थधरे, आलइयभालमउडे, नवहेमचारुचित्त चंचलकुंडल-विलिहज-माण-गंडे, जाव-दस दिसाओ उज्जोवेमाणे, पाभासेमाणे, ईसाणेकप्पे, ईसाणवडिसए विमाणे, जहेव रायप्पसेणइज्जे जाव-दिवं देविड़ि, जाव-जामेव दिसिं पाउभूए, तामेव दिसि पडिगए, भंते ! त्ति, भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ, नमसइ, एवं वयासी अहो !! णं भंते ! ईसाणे देविदे, देवराया महिड्डीए, ईसाणस्स णं भंते ! सा दिव्या देविद्धि कहिं गया, कहिं अणुपविठ्ठा ? गोयमा ! सरीरं गया, 'तएणं से समणे भगवं महावीरे अण्णया कयाइं मोयाओ नयरीओ नंदणाओ चेड्याओ पडिनिक्खमई' इसके बाद वे श्रमण भगवान महावीर किसी एक समय मोकानगरीके नन्दनवन से बाहर निकले और 'पडिनिक्खमित्ता' निकलकर 'पहिया जणवयविहारं विहरई' बाहिरके जनपदोंमे विहार करने लगे ॥१६॥ नयरीभो नंदणाओ चेइओ पडिनिक्खमई" त्या२ one t मे४ समये श्रवार लगवान महावा३ मा नारीना नहन ये-यमांधी विडार ४ा 'पडिनिक्खमिता' त्यांयी नीतीने "वहिया जणवयविहारं विहरइ" मे महाना प्रध्यामा विया લાગ્યા. એ સ. ૧૬ .
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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