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________________ १४२ भगवती 'दीवसमुद्दे' द्वीपसमुद्रान् 'विकुव्वंति' विकुर्वन्ति, विकुर्वणया व्याप्नुवन्ति यद्यपि सनत्कुमारलोके देवीनामुद्भवो नास्ति तथापि सौधर्मलोकोत्पमाः समयाधिकपल्योपमादिदशपल्योपमान्त स्थितिशालिन्योऽपरिगृहीतदेव्य एवं मनत्कुमारदेवानां भोगाय सम्पद्यन्ते इत्याशयेनोक्तम् - अग्रमहिष्य इति । ' एवं ' तथैव पूर्ववदेव 'मार्डिदेवि माहेन्द्रेऽपि माहेन्द्रलोकेऽपि बोध्यम्, तल्लोकवासी देवोऽपि माहेन्द्रपदेनोच्यते, तथाच 'एवं माहिदे त्रि' इतिसूत्रेण अधस्तनी गाथा सूच्यते - " बत्तीस अहावीसा वारस अचउरो सयसहस्सा, आरणे बंभलोया 'असंखेज्जे दीवसमुद्दे' असंख्यात दीप समुद्रोंको अपनी२ विकुर्वणासे भर सकते हैं । यद्यपि सनत्कुमार देवलोक में देवियोंकी उत्पत्ति नहीं होती है- क्योंकि दूसरे देवलोकतक ही देवियों का उत्पाद होना सि द्वान्तमें प्रकट किया गया है, तो भी सौधर्म देवलोकोत्पन्न देवियांकि जिनकी स्थिति १ एक समय अधिक वाले पत्योपम से लगाकर दस १० पल्योपम तक की है और अभीतक जिन्होंने किसी के साथ सम्बन्ध नहीं किया है- अर्थात्-किसी देवादि की जो अभीतक अर्द्धङ्गिनी नहीं बनी हैं ऐसी देवियां ही सनत्कुमारदेवों के भोगने में काम आती हैं- इसी आशय को सूचित करने के लिये 'अग्रमहिपी' ऐसा सूत्र में कहा गया है । एवं माहिदेवि' इसी तरह से माहेन्द्र देवलोक में भी जानना चाहिये । माहेन्द्रदेवलोक वासी देव भी माहेन्द्रपद के वाच्य होते हैं । तथा च ' एवं माहिंदे चि ' इस सूत्रद्वारा नीचे की यह गाथा सूचित की गई हैं-" बत्तीस अट्ठावीसा बारस अट्ठचउरोઅસંખ્યાત દ્વીપ સમુદ્રોને તેમની વિકાશક્ત દ્વારા નિર્મિત વૈક્રિય રૂપાથી ભરી દઇ શકે છે. જો કે સનત્કુમાર દેવલેમાં દેવયાની ઉત્પત્તિ થતી નથી, કારણ કે સિદ્ધતિમાં એવું લખ્યું છે કે ખીજા દેવલાક સુધી જ દેવિયાની ઉત્પત્તિ થાય છે, તા પણ સૌધર્મ દેવલૈકમાં ઉત્પન્ન થયેલી વિયા કે જેમની સ્થિતિ એક સમય અધિકવાળા પચેપમથી લઈને દસ પછ્યાપમ સુધીની હાય છે અને જેમણે હજી સુધી કાઇની પણ સાથે સબંધ જોયે નથી– એટલે કે કાઇ પણુ દેવની ર્હજી સુધી જે અર્ધાંગના બની ન હોય એવી દેવિયાને જ સનકુમાર દેવે ઉપભેગ કરે છે. એ જ आशयनुं सूयन मरवा भाटे "अग्रमहिषी" हा प्रयोग यो छे. 'एवं मार्दिदेवि ' માહેન્દ્ર દેવલેાકના દેવાના વિષયમાં પણ એમ જ સમજવું. ‘માહેન્દ્ર’ પત્તુ માહેન્દ્ર देवलाभां रहेता देवानुं पाछे ने "एवं महिदे वि." सूत्र द्वारा नीचना गाथा सूचित ४श्वामां भावी - "वत्तीस अट्ठावीसो बारस अडचउरो सयसहस्सा
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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