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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ३. उ. १ सनत्कुमारदेवऋद्धिनिरूपणम् १३९ टीका-ततः भगवान सनत्कुमारादीनामपि देवविशेपाणां समृद्धिविकुर्वणादिकं गौतमम्प्रति प्रतिपादयति- " एवं सणंकुमारे वि'इत्यादि । एवं तथैव, सनत्कुमारेऽपि वोध्यमिति शेपः एतावता मूत्रणेयं गाथा सूच्यते-"सणंकुमारणं भंते ! देविदे, देवराया केमड्डिीए, केवइयं च णं पभू विउवित्तए ? गोयमा ! सणंकुमारेणं देविंदे, देवराया महिड्डीए, सेणं बारसण्डं विमाणावाससय साहस्सीणं, वायत्तरीए सामाणियसाहस्सीणं ति, जाव-चउण्डं वावत्तरीणं आयरकूखदेवसाहस्सीणं," इत्यादि । छाया-सनत्कुमारो भगवन् ! देवेन्द्रः, यहिया जणवयविहारं विहरइ ) इसके बाद श्रमण भगवान महावीर ने किसि एक दिन मोका नगरी के नन्दन चैत्यसे निकल कर बाहर जनपद में विहार करने लगे। ___टीकार्थ-ईशानेन्द्र आदिकी समृद्धि तथा विकुर्वणाशक्तिके विषय में अपना अभिप्राय प्रकट करके भगवान् महावीर ने सनत्कुमार आदि देवविशेपोंको समृद्धि और विकुर्वणा आदिका प्रतिपादन तृतीय गौतमके प्रति किया यही बात इस सूत्र द्वारा प्रकट की गई है। " एवं सणंकुमारेवि" सनत्कुमार के विषयमें भी ऐसा ही जानना चाहिये-ऐसा जो यह सूत्र कहा है-सो इतने सूत्र से यह गाथा मूचित की गई है-सणंकुमारेणं भंते ! देविंदे देवराया के महिडीए, केवइयं च णं पभू विकुवित्तए गोयमा! सणंकुमारे णं देविंदे देवराया महिडीए, से णं वारसण्हं विमाणावाससयसाहस्सीणं, बावत्तरीए सामाणियसाहस्तीणं ति जाव चउण्हं बावनंरीणं आयरक्खदेवजणवयविहारं विहरइ ) त्या२ मा 35 हिवसे भानगीना नन्हन सत्यમાંથી નીકળીને, મહાવીર પ્રભુ તેની બહારના પ્રદેશોમાં વિચારવા લાગ્યા. ટીકાઈ–ઈશાનેન્દ્ર આદિની સમૃદ્ધિ, વિક્ર્વાણુ વગેરેનું પ્રતિપાદન કર્યા પછી, ભગવાન મહાવીર પ્રભુ, ત્રીજા ગૌતમ વાયુભૂતિ અણગાર પાસે સેનકુમાર આદિ દેવોની સમૃદ્ધિ, विाि वगैरेनुं वन ४३ छे. "एवं सणंकुमारे वि" सनभाना विषयमा पy એમ જ (ઇશાનેન્દ્ર મુજબ) સમજવું. આ ઉપરથી વાયુભૂતિએ નીચે પ્રમાણે પ્રશ્ન पूछया ये, ते सुयित थाय छ- "सणंकुमारे णं भंते! देविदे देवराया के महिडीए केवहयं च ण पभू विकुन्चित्तए?" 3 werd! देवरा, हेवेन्द्र સનકુમાર કેવી મહાન સમૃદ્ધિ આદિથી યુક્ત છે? તે કેવી વિક્ર્વણા કરવાને સમર્થ છે? "गोयमा! सणकुमारेणं देविंदे देवराया महिडीए, से ण वारसण्डं विमाणावाससयसाहस्सीणं, यावत्तरीए सामाणियसाहस्सीणं:त्ति जाव चउण्हं चाव
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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