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________________ प्रमेदचन्द्रिका टीका श. ३. उ. १ सनत्कुमारदेव ऋद्धिनिरूपणम् १३७ वन्ति, एवं माहेन्द्रेऽपि नवरम्-सातिरेकान् चतुरः केवलकल्पान् जम्बूद्वीपान् वीपान्, एवं ब्रह्मलोकेऽपि, नवरम्-अष्ट केवल कल्पान्, एवं लान्तकेऽपि, नवरम्-सातिरेकान् अष्टकेबलकल्पान महाशुफे पोडश केवलकल्पान् सहसारे सातिरेकान् पोडश, एवं प्राणतेऽपि, नवरम्-द्वात्रिंशतः केवलकल्पान् एवम् __ अच्युतेऽपि, नवरम्-सोतिरेकान् द्वात्रिंशतः केवलकल्पान् जम्बूद्वीपणन द्वीपान, सकते हैं। एवं माहिंदे वि) इसी तरह से माहेन्द्र विषयमें भी जानना चाहिये । (नवरं) परन्तु यहाँ जो विशेपता है वह इस प्रकार से हैं(साइरेगे केवलकप्पे चत्तारि जंबूदीवे दीवे) ये अपनी विकुर्वणा शक्ति द्वारा निष्पन्न नाना रूपों से कुछ अधिक चार जंवू द्वीपोंको भर सकते हैं । ( एवं वंभलोएवि ) इसी तरह से ब्रह्मलोक में भी जानना चाहिये । (नवरं) परन्तु यहाँ पर जो विशेपता है वह इस प्रकार से है कि ये (साइरेगे अट्ठ केवलकप्पे) कुछ अधिक आठ जम्बूद्वीपी को भर सकते हैं । (महासुक्के सोलसकेवलकप्पे सहस्प्तारे साइरेगे सेलस, एवं पाणए वि, नवरं बत्तीस केवलकप्पे, एवं अच्चुए वि, नवरं साईरेगे बत्तीसं केवलकप्पे जंबूदीवे दीवे) महाशुक्रमें विकुर्वणाशक्तिद्वारा निष्पन्न नानारूपों द्वारा पुरे सोलह वृद्धीप भरे जा सकते है। सहस्रारदेवलोक में विकुर्वणा शक्ति द्वारा कुछ अधिक सोलह जंबूदीप भरे विषयमा ५५५ मे . ( नवरं) ५५] भाडेन्द्रनी वि तिमनाये प्रभारी विशेषता है- (साइरेगे केवलकप्पे चत्तारि जंबूदीवे दीवे) ती વિકુવણ શકિતથી ઉત્પન્ન કરેલા વિવિધ રૂપે વડે ચાર જંબુદ્વીપ કરતા પણ વધારે याने मरवाने समर्थ छ. (एवं वंभलोए वि) प्रहसना विषयमा पy मेम र सभा. (नवरं) ५ त्यांना हेवोनी विgqाशितwi नीय प्रमाणे विशेषता छे.- (अट्ठ केवलकप्पे) ते पोताना विधुवा शतिथी निर्मित विविध ३॥ पडे 48 दीपाने मी पाने समर्थ छ. ( एवं लंतेए वि) मे । प्रमाणे सान्तनवा विष ५६५ सभाबु (नवरं) ५५ त्यां रखता योनी विष्णु! शस्तिमा र विशेषता है (साइरेगे अकेवलफप्पे ) मा पोतानी विपर्धा દ્વારા નિર્મિત રૂપે વડે આઠ જંબુદ્વીપ કરતાં પણ વધારે સ્થાનને ભરી શકે છે. (महासुक्के सोलसकेवलकप्पे, सहस्सारे साइरेगे सोलस, एवं पाणए वि, नवर वत्तीसं केवलकप्पे, एवं अच्चुए वि, नवरं साइरेगे बत्तीसं केवलकप्पे, जंबूदीवे दीवे ) मानव विधुवा शतिथी पन्न ४२८ पो 43 ५२॥ સળજબૂદ્વીપો ભરી શકે છે. સહસ્ત્રાર દેવલોકના દેવો વિદુર્વણશકિત દ્વારા નિર્મિત વિવિધ
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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