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________________ - - - १३२ मगनतीसरे ___टीका महावीरस्वामी ईशानेन्द्रस्य फुरुदत्तपुगादि सामानिक देवविषये त्रायः स्त्रिंशकादिविपये च वायुभूतिना कृतस्य प्रग्नम्य समाधानमाह-'नव-इत्यादि । है गोनम वायुभूते । कुरुदत्तपुत्रस्यापि ईशानेन्द्रसामोनिकदेवविशेषस्य समृदयादिकं लिप्यकरदेव बोध्यम्, विशेषस्तु पुनरेतावानेव यव विकृवंगाशया चैक्रिय समुदातेन वारद्वयं समाहत्य निजात्मीयौकियनानारूनिर्माण सम्पूर्ण जम्यूद्वोपापेक्षयाऽपि अधिकं प्रदेशं पूरयितुं स समर्थः इत्यभिमायणाह-'सातिरेगे दो केवलकप्पे' सातिरेको साधिको द्वी केयलकल्लो सम्पूर्णी जवृदीचे दीवे' जम्बूद्वीपो द्वीपो जयूद्वीप नामक दीपदयम् यथोक्तरीत्या चैक्रियनानाशरीरः टोकार्य- वायुभूतिने १४वें सत्र में ईशनेन्द्र के सामानिकदेव जो कुरुदत्तपुत्र आदि है, तथा घायस्त्रिंशक आदि जो देव हैं उनके विषयमें जो प्रश्न किया है- उसका समाधान इस मुद्वारा महावीर स्वामीने उन्हें दिया है- इसमें यह समझाया गया है कि- हे गौतम वायुभूते! कुरुदत्तपुत्र की जो कि अपनी विशिष्ट तपस्याके प्रभावसे ईशानेन्द्रके सामानिक देव हुए है समृद्धि आदि देव कुछ पूर्ववर्णित तिष्यफदेव के समान ही जाननी चाहिये । परन्तु लस कथन को अपेक्षा इस कथन में जो अन्तर है वह 'नवरं पदसे प्रकट करते हुए सूत्रकार कहते है- कि इम कथनमें केवल इतनी ही विशेषता ह कि ईशानेन्द्र के सामानिक देव जो कुरुदत्त पुत्रादिक है वे क्रियशक्ति जन्य वैक्रिय समुद्धात से दो बार युक्त होकर अपनी विक्रिया से निप्पन्न हुए अपने ही अनेक रूपे द्वारा सम्पूर्ण दो जंबूरोपों का अपेक्षासे भी अधिक प्रदेश को भर सकने में समर्थ हो सकते है । यही बात 'सातिरेगे दो केवलकप्पे जंबूदीवे दीवे' इस मूत्रपाठ द्वारा - ટીકર્થ– વાયુભૂતિ અણગારે, ૧૪ ચૌદમાં સત્રમાં બતાવ્યા પ્રમાણે, ઈશાનેન્દ્રના સામાનિ દેવ કુરુદત્તપુત્ર વગેરેના વિષયમાં જે પ્રશ્ન પૂછે છે, તેને ઉત્તર આ સૂત્રમાં આપવામાં આવે છે મહાવીર પ્રભુ જવાબ આપે છે કે હે ગૌતમ! વાયુભૂતિ શી પિનાની વિશિષ્ટ તપસ્યાના પ્રભાવથી દેવરાજ ઇશાનેન્દ્રના સામાનિક દેવ તરીકે ઉત્પન્ન થયેલા કુરુદત્તપુત્રની સમૃદ્ધિ, વિકુવર્ણ આદિનું વર્ણન પૂર્વ કથિત તિર્થક દેવન પ્રમાણે જ સમજવું. પણ તે કથન કરતા કુરુદત્તપુરના કથનમાં જે વિશેષતા છે તે नव पहारा 11वम मावी. सानिरेगे दो केवलकप्पे अंदीचे दीवे" ઈશાનેન્દ્રને સાબનિક દેવ કુરુદત્ત પુત્ર, વૈક્રિય સમુદ્રઘાનથી ઉત્પન્ન કરેલાં પિતાનાં અનેક રૂપ વડે બે જંબુદ્વીપ કરતાં પણ વધારે જગ્યાને ભરી શકવા સમર્થ છે.
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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