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________________ भगवतिम्र १३० ift' स्वस्मिन विमाने - निजे विमाने ईशानेन्द्रस्य सामानिकदेव रूपेणोत्पन्नः, यत्र पूर्ववर्जितविष्य कस्यापि सर्वे वैशिष्टयं विज्ञेयम् इत्याह- 'जा तीसए - sant rods अपरिसेसा कुरुदत्तपुत्ते या तिष्यके वक्तव्यता सा सर्वास्य भपरिशेषा कुरुदत्तपुत्रे ज्ञातव्या तेन अभ्यापि देवशयनीय-देवयवाच्छाद नावगाहना पूर्वकम् आहारादिपञ्चविधपर्याप्तत्या दिव्यशरीर निर्माणादिद्वारा ईशानेन्द्रवद दिव्यदेव विद्युत देवानुभावाप्तिर्वोद्धव्या ॥ ० १४|| मूलम् - " नवरं - सातिरेगे दो केवलकप्पे जंबूदीवे दीवे, अवसेसं तं चेत्र, एवं सामाणिय- तायत्तीसग-लोगपाल अग्गमहिसीणं, जाव-एस णं गोयमा ! ईसाणस्स देविंदस्स, देवरण्णो एवं एगमेगाए अग्गमहिसीए देवीए एयमेयारूवे विसये, विसयमेते बुइए; नो चेत्र णं संपत्तीए विकुव्विसुवा, विकुवंति वा, विकुविस्संति वा " ॥ सू० १५ ॥ सेसा कुरुदत्तपुत्त.' इस सूत्रपाठ द्वारा प्रदर्शित की गई है । इस ar से यह प्रकट किया गया है कि कुरुदत्तपुत्र जो यह सामानिक देव है यह देवशयनीय में, देवदृष्यसे आच्छादित हुआ अंगुल के असंख्यातवें भाग मात्र अवगाहना से उत्पन्न हुआ है । इसके बाद वह पांच प्रकार को आहारादि पर्याप्तियों से पर्याप्त होकर दिव्य शरीर के निर्माण द्वारा ईशानेन्द्रकी तरह दिव्य देवर्द्धि, दिव्यति और दिव्य देवानुभावको भोगता हैं ॥ मु० १४ || 'नवरं सातिरेगे' इत्यादि । सूत्रार्थ - ( अवसेस तंचेव ) इस प्रश्न के उत्तरमें समस्त कथन " जा तीसए वत्तन्त्रया सा सव्वेव अपरिसेसा कुरुदत्त पुत्ते" हेवानु तात्पर्य એ છે કે કુરુદેવ પુત્ર નામના ઇશાનેન્દ્રના સામાનિક દેવ દેવશય્યામાં, દેવદૂષ્ય (વસ્ત્ર)થી આચ્છાદિત થઇને અંગુલના અસખ્યાતમાં ભાગપ્રમાણ અવગાહનાથી ઉત્પન્ન થયા છે. ત્યાર બાદ આહાર પર્યાપ્ત આદિ પાંચે પર્યાપ્તિઓથી પર્યાપ્ત (યુકત) થઈને, દિવ્ય શરીર પામ્યા છે. ત્યાં તેએ ઇશાનેન્દ્ર જેવી જ નિભ્ય સમૃદ્ધિ, દિઘ્ધતિ, દિવ્ય પ્રભાવ वगेरे सोग छे ! सू. १४ ॥ "नवरं सातिरेगे" इत्यादि - सूत्रार्थ - (अवसेसं तं चैव ) या अनन। समस्त उत्तर या विषयभां तिष्य
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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