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________________ १२८ भगवतिम्रो प्रकृतिमतनुक्रोध-मान-माया-लोभः प्रत्यय प्रतनयः दुर्यलाः क्रोधमान मायालोमाः यस्य स मृदुमार्दवसम्पन्नः मृदुन मार्दवन मृदुमार्दवं तेन सम्पन्न: अत्यन्तमार्दवयुक्तः, आलीनभद्रका, आलीने आश्रिते भद्रकः आश्रितीचागुर्व ननुशासनेऽपि सुभद्रक एवं नत्वभद्रका इति, 'अgमं अष्टमेन' अष्टमम् अएमेन तन्नामकतपसा 'अणिरिखत्तेणं' अनिक्षिप्तेन निरन्तरेण 'पारणप' पारणके क्रियमाणे 'आयंबिल परिग्गहिएणं' आचाम्लपरिगृहीतेन 'तयोकम्मेणं' तपः कर्मणा 'उड्डूं' ऊर्ध्वम् 'पाहाओ, बाहुभुनी 'पगिझिय पगिझिय' प्रगृह्य प्रय समुत्थाप्य 'मुराभिमुहे' प्रतिदिन सूर्याभिमुखः सूर्यसंमुखः 'आयावणभूमिए' आतापनभूमौ 'आयावेमाणे' आतापयन् आतापनां कुर्वन् 'यहुपडिपुण्णे' बहुमतिपूर्णान् संपूर्णान् 'छम्मासे' पण्मासान् पण्मासावधिं यावत् 'सामदेणसंपन्ने आलीणभदए' इस पाठका संग्रह किया गया है। इसका भाव यह है कि वे स्वभावतः उपशान्त परिणामवाले थे, स्वभावत: ही उनमें क्रोध, मान, माया और लोभ ये चारों कापाये पतली थीं। उनकी अन्तःकरण धृत्ति अत्यन्त मृद्धता गुणसे युक्त थी । वे अपने आश्रितमें अधचा गुरु के आज्ञामें सदा भद्रवृत्ति संपन्न थे अभद्रवृत्ति संपन्न नहीं थे । 'अट्टमं अट्टमेणं अणिक्खितणं वे निरन्तर अहम अट्ठमकी तपस्या करते थे 'पारणए आयंपिल परिग्गहिएणं तवोकम्म णं' जिस दिन वे पारणा करते थे उस दिन वे आयंधिलकी तपस्याके साथ पोरणा करते थे । 'उर्ल्ड चाहाओ पगिज्झिय सूराभिमुहे आयाणभूमिए आयावेमाणे'. आतापनभूमिमें आतापना करते समय वे सूर्य के सामने खडे रहते और अपने दोनों हाथ ऊंचे किये रहते थे । इस प्रकार से उन्होंने इस तपःकर्मकी आराधना 'बहुपडिपुण्णे छम्मासे' ठीक ६ छहमास तक की- छह मांसमें एक दिन भी इस કષાય તેમનામાં ક્ષીણ થયેલા હતા. તેમનું અંતઃકરણ અતિશય માર્દવથી (મૃદુતા) યુકત હતું. તેઓ તેમના ગુરુજનોની આજ્ઞાને અનુસરનારુ અને ભદ્રવૃત્તિવાળા હતા. "अट्टमं अट्ठमेणं अणिावखत्तेणं" । निरत२ मभने पा२ मम ४२ता ता. "पारणए आयंबिल परिण्गहिएणं तवोकम्मेणं" तमा पायाने Eिसे साय:जिसनी तपस्या ४२ता ता. "उड़े वाहाओ पगिज्झिय सूराभिमुहे आयावणभूमिए आयावेमाणे" या statजी श्यामा सूर्यना सामे Gau Rहीन, पन्ने 14 या समान मातायनात sat. "बहुपडिपुण्णे छम्मासे" तभषे २१२ ७ भास सुधी ते तपनी सतत माराधना ४. “सामण्णपरियागं पाउणिचा"
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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