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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ३ उ. १ तिप्यकान्यसा मानिकदेवऋद्धिवर्णनम् १०७ छाया - यदि खलु भदन्त ! तिष्यको देवः एवं महर्द्धिकः, यावत्-एतांवच मथुर्विकुर्वितुम् शक्रस्य खलु भदन्त । देवेन्द्रस्य देवराजस्य अवशेषाः सामानिका देवाः किंमहर्द्धिकाः तथैव सर्वम्, यावत् - एप गौतम 1 शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य एकैकस्य, सामानिकस्य देवस्य अयम् एतद्रूपो विषयः, विपयमात्रम् उक्तम्, नोचैत्र सम्पच्या व्यकुर्विपूर्वा विकुर्वन्ति वा, विकुर्विष्य " शके frees नामक सामानिक देवके अतिरिक्त अन्य सामानिक देवोंका ऋद्धि आदिका वर्णन - 'जइणं भंते! तीस देवे एवं महिडीए' इत्यादि । मुत्रार्थ - (जणं भंते!) हे भदन्त ! यदि (तीसए देवे) तिष्यक देव ( एवं महिडीए जाब एवइयं च णं पभृ विकुव्वित्तए) इस प्रकारकी बड़ी समृद्धिवाला हैं यावत् वह इस प्रकारकी विक्रियाशक्तिका धारक है, तो (सक्कस्म णं भंते । देविंदस्स देवरण्गो अवसेसा सामाणिया देवा के महिदीए ) हे भदन्त ! देवेन्द्र देवराज शतके और जो बाकी के सामानिक देव है ये कितनी बड़ी ऋद्धिवाले है ? इत्यादि सब पूर्वोक्त रूप से प्रश्न समझना चाहिये । (तहेव सव्वं जाव एस णं गोयमा ! सक्करस देविंदस्स देवरण्णो एगमेगस्स सामाणियस्स देवस्स इमेयाख्वे विस विसयत्ते इए) हे गौतम! इसके उत्तर में पहिले की तरह ही कथन जानना चाहिये, यावत् हे गौतम! देवेन्द्र देवराज शक्रके प्रत्येक सामानिक देवका यह इस प्रकारका विषय विषयमात्र है (नो તિષ્યક સિવાયના શકેન્દ્રના સામાનિક દેવેાની સમૃદ્ધિ આદિનું વર્ણન जइणं भंते ! तीसए देवे एवं महिडीए" इत्यादि सूत्रार्थ - अग्निभूति अगुगार महावीर प्रभुने पूछे छे - (जइणं भंते तीसए देवे एवं महिड्ढीए जाव एवइयं च णं पभू विकुव्वित्तए) हे लहन्त ! ले तिष्य દેવ આટલી મહાસમૃદ્ધિ આદિથી યુકત છે, અને જો તે આટલી બધી વિકાશકિત धरावे छे, तो (सक्कस्त णं भंते । देविंदस्स देवरण्णो अवसेसा सामाणिया देवा के महिडीए) त ! हेवरान, देवेन्द्र शडेना गाडीना सामानि देवो देवी समृद्धिવાળા છે! ઈત્યાદિ પ્રશ્ન આગલા સૂત્ર પ્રમાણે જ સમજી લેવે. उत्तर- (तहैव सव्वं जात्र एस णं गोयमा ! सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो एगमेगस्स सामाणियस्स देवस्स इमेयारूवे विसये विसयमेत्ते बुझ्ए ) हे गौतम! દેવરાજ, દેવેન્દ્ર શુક્રના પ્રત્યેક સામાનિક દેવોની સમૃદ્ધિ વિધ્રુવ ણા આદિનું કથન પણ પહેલાંની જેમ જ સમજવું તિષ્યક દેવ પ્રમાણે જ સમજવું) તેમની વિધ્રુવ ણા શકિતનું
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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