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________________ भगवती एतायच्च प्रभुर्विकुर्वितम्, तथा नाम युवति पुवा यावद-प्रमुः केवलकल्पं जम्मूद्वीपम् . द्वीपम् यावत्-तिर्यक् संख्येयान द्वीपसमुद्रान बहीमिः नागकुमारीभिः यावत्-विकुर्विष्यति था, सामानिकाः त्रयस्त्रिंशः, लोफपालाः अग्रमहिप्यत्र तत्र सत्तण्ड अणियाणं, सत्तण्हं अणियादिवईणं, चन्चीसाए आपरकम्बदेवसाहस्सीणं अन्नेसिं च जाव चिहरइ) नागकुमारेन्द्र, नागकुमारराज धरण पहुत ऋद्धिके स्वामी हैं यावत् वे चालीस लाख भवनावासों के ऊपर, ६ छ हजार सामानिक देवों के ऊपर. तेनीम प्रायधि. शक देवों के ऊपर, चार लोकपालेां के ऊपर, अपने २ परिवारवाली ६छह पटरानियोंके उपर, तीन सभाओंके ऊपर, सात सेनाओंके ऊपर, सात सेनापतियों के ऊपर, चौवीस हजार आत्मरक्षक देयों के ऊपर स्वामित्व करते हुए यावत् दिव्य भागों को भोगते रहते है । (एव. इयं च ण पभू विडवित्तए-से जहा नामए जुबई जुधाणे जाव पभू केवलकप्पं जंबूदीवं दी जाय तिरिय संखेज्जे दीवममुद्दे पर नागकुमारीहिं जाव विउन्धिस्सति चा, सामाणिया तायत्तीसा लोगपाला अग्गमहिसीओ य तहेव जहा चमरस्स, एवं धरणेणं नागकुमारराया महिड्डीए जाव एवइयं जहा चमरे तहा धरणे वि) उसकी विकृर्वणा शक्ति इतनी है कि जैसे कोई युवा पुरुष युवती स्त्रीके हाथको पंक्रड लेता है-अर्थात् जैसे युवा और युवती परस्परमें चिपट जानेकेकारण संलग्न प्रतीत होते है उसी तरह वह नागराज धरणेन्द्र योवत् अपने परिसाणं सत्तण्हं अणियाणं सत्तण्डं अणियाहिवइणं चउव्वीसए आयरक्खदेवसाहस्सीणं अन्नेसिं च जाव विहरइ नागभारेन्द्र नागभा२४ URejupl मारे સમૃદ્ધિ આદિથી યુકત છે તે ચાલીસ લાખ ભવનાવા પર છ હજાર સામાનિક દેવોપર, તેત્રીસ ત્રાયશ્ચિશપર, ત્રણચાર લોકપાલોપર, પોતપોતાના પરિવારથીયુકત પટ્ટરાણીઓ પર ત્રણ સભાઓ પરસાત સેનાઓ પર સાત સેનાપતીઓ પર અને ચોવીસહા૨ આત્મરક્ષક દેવે પર આધિપત્ય ભેગવતે હોય છે. તે ત્યાં અનેક દિવ્ય ભેગે ભેગવે છે. (एवइयं च णं पभू विउवित्तए से जहा नामए जुबई जुवाणे जाव पभू केवलकप्पं जवूदीवं दीवं जाव तिरियं संखेज्जे दीवसमुद्दे वहुर्हि नागकुमारीहि जाय विउविस्संति वा, मामाणिया तायत्तीसा लोगपाला अग्गमहिसीओ य तहेव जहा चमरस्स, एवं धरणेणं नागकुमारराया महिडीए जार एबइयं जहा चमरे तहा धरणे वि) જેવી રીતે કોઈ યુવાન કેઈ યુવતીનો હાથ પકડીને તેને બાહુપાશમાં જકડી લેવામાં સમર્થ હોય છે, એવી જ રીતે નાગકુમારેન્દ્ર ધરણ પણ પોતાની વક્રિય શકિત દ્વારા
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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