SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श.३३.१ अग्निभूते वायुभूति प्रति चमरऋद्धिस्वरूपवर्णनम् ४९ आख्यातः, (आचक्षाणस्य) भापमाणस्य, प्रज्ञापयतः प्ररूपयतः एतदर्थ नो श्रद्दधाति, नो प्रत्येति, नो रोचयति, एतदर्थम् अश्रदधत् अप्रत्यन, अरोचयन् उत्थया उत्तिष्ठति, उत्थाय यत्रैव श्रमणो भगवान् महावीरस्तत्रैत्र उपागच्छति, या. वत्पर्युपासीनः एवम् अबादीत्-एवं खलु भगवन् ! मम द्विनीयो गौतमोऽग्निसब विपय यहाँ पर चमर से लगाकर उसकी अग्रमहिपियों तकका अग्निभूतिने वायुभूतिसे विना पूछे कहा- ऐसा जानना चाहिये । इस . तरह चमर से लेकर उसकी अग्रमहिपियों तक की वक्तव्यता समाप्त हुई । (तेणं से तच्चे गोयमे वायुभूई अणगारे) इस के बाद तृतीय गौतम वायुभूति अनगारने (दोच्चस्स गोयमस्स अग्गिभूयम्स अणगारस्स) दितीय गौतम अग्निभूनि अनगार की (एवमाइक्खमाणस्स ) इस प्रकार से कही गई (भासमाणस्स) भापी गई (पण्णवेमाणस्स) जताई गई (परूवे माणस्स) प्ररूपी गई (एयमटुं नो सद्दहइ) बात पर विश्वास नहीं किया (नो पत्तियह) न उसके बात पर प्रतीति की (नो रोएइ) उन्हें बात रूचि नहीं (एयमढे असदहमाणे, अपत्तियमाणे, अरोएमाणे, उठाए, उइ) इस प्रकार इस बात पर अश्रद्धालु बने हुए, प्रत्यय (विश्वास रहित) बने हुए, रुचिरहित बने हुए वे अपनी उत्थानशक्ति से उठे (उद्वित्ता) और उठ कर (जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव ऊबागच्छइ ) जहां श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे वहां आये (जाव पज्जुवासमाणे एवं दयासी) પટ્ટરાણીઓની સમૃદ્ધિ, વિક્ર્વણુ શકિન આદિનું સમગ્ર કથન અગ્નિભૂતિએ વાયુભૂતિ અણગારને કહી બતાવ્યું – આ બધુ વાયુભૂતિએ પૂછ્યું ન હતું છતાં પણ मामाभूतिथे तभने ४ समव्यु. (ते से तच्चे गोयमे वायुभूइ अणगारे) alon ध२ वायुभूति मारने (दोचस्स गोयमस्स अग्गिभूयस्स अणगारस्स) मी ५२ अतिभूति मारे (एवमाइक्खमाणस्स) ४ी (भासमाणस्स) साक्षी, (पण्णवेमाणस्स ) मतावली मने (परवेमाणस्स) प्र३पेटी (एयम नो सहइ) पातमा श्रद्धा य नहीं, (नो पत्तियइ) a वातनी तेभने प्रताति 2 नहीं, (नो रोएड) भने ते वात रुथि नहीं. (एयमढें अवदहमाणे, अपत्तियमाणे, अरोएमाणे उदाए उद्वेड मारीत तेमनी पात प्रत्ये अश्रद्धा, પ્રતીતિરહિત, અને ચિરહિત બનેલા તેઓ પિતાની ઉથાન શકિતથી ઉઠયા. (उहित्ता) त्यांथा.हीने (जेणेव समणे 'भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छड) न्यां अंभाए भगवान महावीर ने ता त्या माव्या जाव ..पज्जुवासमाणे एवं
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy