SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८९४ ममपतीने ( नवमः) उद्देशः 'लेस्साहिय' दशमः छेश्याभित्र सम्पद्यते, इवि रीत्या 'दसउद्देसा' दश उद्देशाः सम्पद्यन्ते । वक्तव्यविषयं प्रस्तौति 'रायगिहे नगरे' राजगृहे नगरे' 'जाब - एवं क्यासी' यावत् एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण गौतमः ' बयासी' अवादीत् - 'ईसाणस्स णं मंते !" दे मदन्त । ईशानस्य खल 'देविंदस्स देवरन्नो' देवेन्द्रस्य देवराजस्य 'कइलोगपाला' कति लोकपालाः 'पण्णत्ता' मंत्रसाः १ भग वानाह 'गोयमा !' 'चचारि लोगपाला' चत्वारो लोकपालाः 'पण्णत्ता' मशप्ताः, 'नेरइए' नवम उद्देशक नेरयिक संबंधी है अर्थात् नौवे उद्देशक में नैरयिक संबंधी उक्तव्यता का प्रतिपादन किया गया है। तथा दशवां उशक 'लेस्साहि' लेश्याओं से संपादित हुआ है अर्थात् दशवं उद्देशक में लेश्याओं का वर्णन किया गया है । इस तरह से इस चतुर्थ शतक में दश उद्देशक हैं । अय सूत्रकार वक्तव्य विषयको प्रस्तुत करते हैं - 'रायगिहे नयरे जाव एवं पयासी' राजगृह नगर में यावत् इस प्रकार से गौतमने कहा पूछा, कि-ईसाणस्स णं भंते !' हे भदन्त | ईशानके जो कि ' देविंदस्स देवरष्णो' देवांका इन्द्र और देवों का राजा है 'कई लोगपाला' कितने लोकपाल ' पण्णत्ता' कहे गये हैं ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं कि 'गोयमा' हे गौतम! 6 चत्तारि लोगपाला ' चार लोकपाल पण्णत्ता ' कहे गये हैं । ' तं जहा ' बे इस प्रकार से है- 'सोमे, नमे, वरुणे, वेसमणे' सोम, यम, · 6 આ यु ं छे. 'नेरइए' नवभो उद्देश४ नारअना विषयमा छे. ते उद्देशम्भ नाश्नी વકૃતવ્યતાનું પ્રતિપાદન કરવ માં આળ્યું છે. तथा सभी લેશ્વા એના વિષયમાં વર્ણન કરવામાં આવ્યુ છે. આ રીતે ઉદ્દેશકે છે. હવે સૂત્રકાર વકતવ્યના વિષયનું વિવેચન કરે છેजाव एवं वयासी' राजगृह नगरमा महावीर स्वाभीनुं सभवसर ધર્માંપદેશ સાંભળીને પરિષદ પાછી ફરી. ત્યારખાદ મહાવીર પ્રભુને मी प्रमाणे अमन श्य- 'ईसाणस्स णं भंते !' हे महत्!' 'देविंदस्से देवरण्णो' हेवेन्द्र देवरान प्रशानना 'कई लोगपाला पण्णत्ता ?” सोडयातो डेटा है ? ते अश्नन! उत्तर मापता महावीर अलु उधु - 'गोयमा !' हे गौतम! 'चत्तारि लोगपाला' ४शानेन्द्रना यार सोडपासो 'पण्णत्ता', 'तंज' तेमनां नाभ या प्रभाछे- 'सोमे, जमे, वरुणे, वेसमणे' सोभ, यम, वरुणु ने वैश्रम उद्देशउभां - 'लेस्सा हिं' ચેાથા શતકમાં દસ 'रायगिहे नयरे परिषद नीजी - ગૌતમ સ્વામીએ
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy