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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीरा श.३ उ ९ स् १ इन्द्रियविषयस्वरूपनिरूपणम् ८७९ मुरमो' सोन्द्रिययिपयमत्र प्रदर्शितमेव, उघावचा त्वेवम्-'से गूण मते ! उचावहिं सहपरिणागेहिं परिणममाणा पोग्गला परिणमतीति वचव सिया ? हता, गोयमा !' इत्यादि । तद् नन भगवन् ! उच्चावचैः शब्दपरिणाम परि णममाना पुद्गला परिणमन्तीति वक्तव्य स्यात् ? हन्त, गौतम 1 इति । तत्र उच्चावच व्युत्पत्तिस्तु उत्फ घ अवाक् च इति विग्रहे मयूरव्य सकादित्वाम्समासन योध्या 'मुभिणो' उद मून पुनरेवम्-‘से गुण भते ! कहा है कि इसका परिणाम मी सुखस्पर्शरूप परिणाम और दुखम्पर्शरूप परिणाम के मेटसे दो प्रकारका होता है। दूसरी जगह 'इदियविमा उचावय सुन्मिणो' ऐमा पाठ है इसका तात्पर्य ऐसा है कि इन्द्रियों के विपयका सूत्र, उचावचसूत्र और सुरमिस्त्र इसतरह नीन सन या कहना चाहिये, मो इन्द्रिय विपपसपधी सूत्र तो यहा पर कार ही दिया गया है । अय रहा उचावयसूत्र सो वह इस प्रकार से है-'से गृणं मते ! उच्चावएहिं सपरिणामेहिं परिणम माणा पोग्गला परिणमतिती यत्तव्य सिया-हता, गोयमा इत्यादि हे मदन्त ! उचावच शन्दपरिणामों द्वारा परिणामको माप्त हुए पुनल परिणमते में क्या ऐसा कह सकते हैं हे गोतम ! हा ऐसा कह मझते हैं इत्यादि, 'उच्चावच' शब्दकी व्युत्पति 'उदकूच' अघाचास मकारके विग्रह करने पर समामदाराई नाननी चाहिये। 'सुरमिसूत्र इस प्रकारसे है 'सेक्र्णं भते ! सुन्मिसइपोग्गला दुन्मिसात्ताए परिબે પ્રકારના કહ્યા છે– સુખસ્પર્શરૂપ પરિણામ અને દુખસ્પશરૂપ પરિણામ આ રીતે પાંચ ઇન્દ્રિયના વિષયનું ત્યાં નિરૂપણ કરવામાં આવ્યું છે भी पाये 'इदियविसप उचावयम्रन्मिणो' 48 छ । ભાવાર્થ એ છે કે ઇન્દ્રિયના વિષમન સુત્ર સાવચન, અને સુરક્ષિસૂત્ર', એ ત્રણ સુર અડી કહેવા જોઈએ તેમાના ઇન્દ્રિય વિષયક સૂનું તે કથન ઉપર ३२पामा नापी गयु वयसूत्र का प्रभा- 'से पूण मते । उच्चापनि सहपरिणामेहिं परिणममाणा पोग्गला परिणमसीति बचब सिया ? ( ભદના ઉચ્ચાવચ શખ પરિજ્ઞામે વાર પરિણમન પામેલા યુગલો પરિમે છે सभ ५ म हता, गोयमा! स, गीतमा सी शराय छ भाव' शनी व्युत्पत्ति न प्रभारी - 'उदक च अवाक च' 'भुशमसूत्र मा प्रभाले - 'से गुण मते । मन्मिसइपोग्गला दुन्मिमइयाए परिणमति?'
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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