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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श ३ ३ ८.१ मवनपत्यादिदेवस्वरूपनिरूपणम् ८६३ 'भूमाणदे१ भूतानन्दः 'नागकुमारिंदे' नागफुमारेन्द्रः नागकुमारराया' नागकुमारराज, तल्लोक्पालानाइ-'कालवाले' २ कालपाल 'फोलपाछे'३ फोलपाल 'सखवाले४' शवपाल , 'सेलवाले' शैलपालम । एते धरणेन्द्रादय दश देवा नागकुमारा देवानामाधिपस्यादिक कुर्वन्तो विहरन्ति । जग'नागकुमारिंदाण' यथा नागकुमारेन्द्राणाम् 'एमाए वचबयाए' अनया उपर्यु क्तया वक्तव्यसया 'नेयच्च' सातव्यम् प्रतिपादितम् 'एव तव 'इमाण नेयन्त्र' एपा वक्ष्यमाणाना देवानामपि ज्ञातव्यम् वेग्तिव्यम्, तयारि 'सुवष्णकुमाराण' सुवर्ण कुमाराणाम् उपरि दश देवा आधिपत्यादिक कुर्वन्तो विहरन्ति । 'वेणुदेवे' वेणुदेव 'वेणुदाली' 'वेणुदालियेति दौ सुवर्णकुमारेन्द्रौस्त , 'घेणुदेवे १ वेणु देवेद्र तस्य लोकपालाश्चत्वार 'चित्ते' चित्र , 'विचिचे'३ विचित्र 'चित्त पक्खे'४ चित्रपक्ष 'विचित्तपक्खे'५ विपित्रपक्ष , 'येणुदाली' वेणुदालीन्द्रः तस्य लाक्पालाचत्वार तनामका एव 'चित्ते'२ चित्र 'विचिसे'३ विचित्र , 'चित्त पक्खे'४ चित्रपक्ष, 'विचित्तपक्खे ५ विचित्रपक्षय, तथा 'विज्जु जहा नागकुमारिंदाण एयाए पत्तन्बयाए 'नेयम्व' जिस प्रकारसे नाग कुमारोंके इन्द्रों के विपयमें यह प्रतिपादन किया है एवं वैसा ही प्रतिपादन 'इमाण नेयध' इनवक्ष्यमाण देषों के इन्द्रों के विषयमें भी जानना चाहिये । जेसे 'सुवण्णकुमाराण' सुवर्णकुमारोंके ऊपर अधिपनित्व करनेवाले 'घेणुदेवे वेणुदाली चित्ते, विचित्ते, पित्तपरखे, पिचित्तपक्खे' घेणुदेवेन्द्र और येणुदागेन्द्र है। ये दो सुवर्णकुमारों के इन्द्र है। इनके चारलोक 'चित्र, विचित्र, चित्रपक्व, और विचित्रपक्ष' ये है । अर्थात् घेणुदेवेन्द्र के भी इन्हीं नामोंके चार लोकपाल है और वेणुदालीन्द्रके भी इन्हीं नामके पार लोकपाल है । इस प्रकार घेणुदेव भादि १० देव सुवर्णकुमारीके ऊपर भाधिपत्य आदिक फाते है । नागकुमारिंदाण एयाए वचन्मयाप नेयच नागभार हाना न्ना विषयमा युत प्रतिभा छ 'ए' मेदु प्रति प्रमाण ने पच' नाये sufai रेवानन्द्रीना विषयमा पर सभा - 'मुषण्णकुमाराण' भुपमा। 8५२ मधिपतिया २२६ घेणुदेवे, वेणुदासी-चित्ते, विचित्ते, चितपश्खे, विचित्रपक्खे इस हे नाथे प्रभा [१ देवन्द्र बने [२] વેણુનીન્દ્ર એ બે સુવર્ણકમાના ઈન્ડી છે તે દરેક ના ચાર, ચાર લોકપાલો[થી ૧૦ને ચિત્ર વિચિત્ર, ચિત્રપક્ષ અને વિચિત્રપક્ષ બિન્નેના ચાર લોપારીના નામમાં કોઈપણ જાતનો તફાવત નથી] આ રીતે બે ઈન્દ્રો અને તેમના આઠ વાકપાલો સુવર્ણમા પર અધિપતિત્વ પમ્પત્ય, ભર્તત આદિ કરતા હોય છે
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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