SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४० भगवती 9 यथा सामानिकास्वथाज्ञातव्या, लोकपालास्तथैव नवरम् सख्ययाः जी मणितव्या ( बहुभि. असुरकृमारे दवे, देवीभित्र आकीर्ण समुद्रा यावत् त्रिकुर्विष्यति मा ) यदि भगवन् । घमरस्य लो पालादेवा एव महर्द्धिका, यावत् - एतावच अगुरेन्द्रस्प, भगुरराजस्प मभूर्विकुवितुम् चमरस्प , तायतीसया देवा के महड़िया ?) हे भदन्त ! असुरन्द्र असुरराज उस चमर के जो श्रापत्रिकदेन किमनी पड़ी ऋदिवासे हैं ? (तीसा जहा सामाणिया तहां गया) हे गौतम! जिस प्रकार से चमर के सामानिक देवका वर्णन किया गया है उसी प्रकार से घमर के प्रायत्रिशकदेवोंका भी वर्णन जानना चाहिये । (लोयपाला - तदेव ) इसी तरह से लोक्पालोंका भी कथन जानना चाहिये । (वर) विशेष ऐसा है कि - (मखेज्जा दीनममुग भाणियम्बा) वे अपनी विक्रिया द्वारा निष्पन्न रूपों द्वारा अनेक असुरकुमार देव एन देवियों के रूपों द्वारा - तिर्यग्लोयमें सरयाप्त और द्वीपसमुद्रों को भर सकते हैं ऐसा जानना चाहिये । (पहिं असुरकुमारेहि देवे हि देवीय आरने जा त्रिकुव्विसति वा ) अनेक असुरकुमारों से तथा देवियोंसे सख्यात द्वीप समुद्रकों भर सकते हैं, ऐसा जो यह उनकी विकर्षणा के विषय में कथन किया गया है सो यह केवल उनका सामर्थ्यमा * * दिग्वलाया है पाषत् वे ऐसी विक्रिया नहीं करेंगे। (जइब भंते । चमरस्त अतुर्रिदस्म असुररण्णो लोगपाला देवा एवं महिडिया रण्णो वायचीसया देत्रा के महट्टिया ? ) से हन्त ! असुरेन्द्र असुरशन भरना त्रायसिंह देवी महा ऋद्धि हिथा युक्त ! ( तायत्तीसया जहा मामा णिया तडा णेयष्वा ) ऋद्धि भने विभुवा शक्ति विषे अमरेन्द्रना साभानि देवाना वर्षान प्रभावेन सभरना भायलिश देवानु वर्षानसभ (लोयपासा तद्देय) सोम्यानुभव प्रभासमन्न्वु (नयर) विशेषता से छे (सखेखा दीत्रसमुद्दा भाणियचा तेथे तांना वैयि शक्तिथी अत्यन અનેક અસુરકુમાર દેવા અને તેનીએના રૂપથી તિર્યંÀાકના સુખ્યાત દ્વીપ અને समुद्रीने छातिभरी है (बहुईि असुरकुमारेहिं देवेहिं देषिटिं व आइले जात्र त्रित्रिस्सति ) "तेला भने असुरकुमार देवा भने वा समात દ્વીપસમુદ્રોને ભરી દઇ શકે છે' તેમની વિદ્યા શક્તિ વિષેનું આ કથન તેમનું મામ પ્રકાર કરવા માટે જ લખવામા ભાજી છે. પણ તેમણે એવું કદી કર્યું" નથી, અને કરશે પણ નહીં.
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy