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________________ २८ भगवती करणशक्तपा असख्येयान् तिग्वीपसमद्रान् नानाऽसुरकुमारदेवदेवीमि: भने समर्थः इति भाव' । “एसणे गोयमा! यमरस्म अमुरिंदस्स अमुररको एगमेगस्स सामाणयदेवस्स अपमेयारूपे विसए विसयमते मुराए, णोवेव में सपत्तीए पिकुत्रिम पा विफुन्धति वा, विकृमिस्सति वा" पप बम्लु गौतमा पमरस्य मसुरेन्द्रस्य अमुरराजस्य एकरस्य सामानिदेवस्य अयम् एतापो विषयः विपयमाप्रम् उदिवम् नोचैत्र खलु सपच्या व्यका विकुर्वन्ति पा निर्षिय न्ति या व्याख्या पूर्वसूत्रे कयिमाः ॥३॥ म ॥ घमरस्य प्रापसिंशकदेवसम्बन्धि अदिविकुणाशयादेवक्तव्यतामस्ताव' मूरम्-"जइण भंते | चमरस्स असुरिंदस्स, असुररण्णो सामाणियदेवा एव महिद्रिया, जाव एवइयं च ण प विकवित्तए, चमरस्स ण भते! असुरिंदस्स असुररपणो तायत्ती सया देवा केमहिडिया, तायत्तीसया जहा सामाणिया तहाणेयव्वा लोयपाला तहेव, णवर सखेजा दीवसमुद्दा भाणियव्या (बहुहिं असुरकुमारेहि देवेहि देवीहिंय आइन्न जाव विकु तिर्यग्लोफके असख्यात द्वीप और समुद्रोफो भाकीर्ण आदि विशेषण घाला कर सकता है उसी प्रकार तिर्यग्लोक के असंख्यात मीप समुद्रों को क्रियसभुशत द्वारा उत्पादित अनेक असुरकुमार देवोंसे और देवियोंसे आकीर्ण आदि स्वरूपवाना कर सकता है परन्तु हे गौतम ! उन्होंने ममीतक ऐसा किया नहीं है-वर्तमान में भी में ऐसा नहीं करते है और न आगे भी ऐसा घे करेंगे। यह तो उनकी शक्तिको फेवल प्रदर्शनमात्र है इससे उनमें इतनी शक्ति यही केवल प्रकट किया गया है | ०३ ॥ સરતી, પસ્તી, સ્પષ્ટ અને પ્રવાહિત કસ્વાને સમર્થ છે આ રીતે એ વાતનું પતિપાન કરાયું છે કે અમરેન્દ્રના જેટલી જ વૈક્રિય શકિત તેના સામાનિક ર પs ધરાવે છે પરત છે ગૌતમ ! તેમણે આજ સુધી એવું કદી કર્યું નથી, વર્તમાન પણ તે એવું તો નથી અને ભવિષ્યમાં પણ એવું કરશે નર્યું. આ સમગ્ર કાનને કેત તેમની શકિત દર્શાવવાનો જ છે મા કથન દ્વારા તેમની શક્તિનું પ્રદર્શન માત્ર કરવામાં આવ્યુ છે (સ. ૩)
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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