SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1087
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टी श ३उ ऽसु ५ वैश्रमणनामकलोकपालम्वरूपनिरूपणम् ८३३. पलिओवमाणि ठिई पण्णता, अहोवचाऽभिण्णायाणं देवाण एग पलिओवम ठिई पण्णत्ता, एमहिड्ढीए, जाव-वेसमणे महाराया, सेव भते ! सेव भते । ति ॥ सू० ५॥ तईयसयम्स सत्तमो उद्देसा सम्मत्तो छाया-कुत्र खलु मदन्त ! शक्रस्य देवेन्द्रम्य देवराजस्य वैश्रमणस्य महाराजस्य बल्गुनाम महाविमान प्रसप्तम् ' गौतम! तस्य खल सौधर्मा बतसरस्य महाविमानम्य उत्तरेण यथा सोमम्य महाविमान - राजधानी वक्तव्यता तया ज्ञातव्या, यावत्-मासादावतसका , शक्रस्य खल्लु देवेन्द्रस्य शकेटके चौथे लोकपाल वैश्रमणका वर्णन 'कहिण भते' इत्यादि । सूत्रार्थ(कष्णि मसे ! सकस्म देविंदस्स देवरपणो वेसमणरस महारपणो घग्गू नाम महाविमाणे पण्णत्ते) हे भदन्त ! देवेन्द्र देव गज शक्रके चतुर्थलोकपाल वैश्रमण पहाराज पा चला नामका महा विमान किम स्थान पर है (गोयमा) हे गौतम ! (तस्म ण सोर म्मपडिसयम्स महानिमाणस्म उत्तरेण जहा मोमसन महाविमाणरायटाणिवत्तन्वया ता नेयम्वा) पैश्रमण महाराजका विमान सोधर्मावतसक महाविमानकी उत्तर दिशामें असख्यात हजार योजन जाकर है | इस मवध में समस्त कथन सोम महाराजके विमानकी तरह जानना चाहिए । राजधानी की वक्तव्यता मी सोम महाराजकी राजधानीकी तरह से ही समझनी चाहिये । (जाय पासायव सया) यावत् मासादावतसक तक का ही यह साम महाराजके विमान आदिकोको तरह का कथन यहा ग्रहण - કેન્દ્રના ચેથા લોકપાલ શ્રમણનું વર્ણન 'कहिण मते !' या - स्नाय' - (कहिण मते ! समास्स देविदस्स देवरण्णो वेसमणस्स महारष्णो र नाम महाविमाणे पण ?) महन्त ! रेवन्द्र ०५ ना याया पलभर महारानु नामर्नु माविमान ४या स्याने छ । (गोयमा ) - ! (तस्स ण सोहम्मवडिंसयस्स महाविमाणम्स उत्सरेण जहा सोमस्स पमाण - रायहाणिवत्तम्बया सहा नेयवा) भनु महारानु विमान મફત સક મહાવિમાનની ઉત્તર દિશામાં અસ ગ્યાત હજાજન દૂર જવાથી આવે 1 વિમાન વિષયક સમસ્ત કથન તેમના જાપાની જા पानानु न प सामनी सत्यानीना वन प्रभाले भावु (जाव पासाय सया ) प्रामात मन पर्सन मन्तनु समस्त ४यन मी म र्यु જુની
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy