SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1077
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अमेयचन्द्रिका टीका श ३ उ ७ म ४ वरुणनामकलोकपालस्वरूपनिरूपणम् ८२३ न्द्रस्य, देवराजस्य, वरुणस्य महाराजस्य देशोने द्वे पल्योपमे स्थिति. पक्षप्ता, यथाऽपत्याभिज्ञाताना दवानाम् एक पल्योपमम् स्थितिः प्रज्ञप्ता, एव महर्दिक, यावत्-वरुणो महाराज ॥ मू० ४ ॥ ___टीका-वरूणनाम वतीयलोक्पाल निरूपयितु प्रस्तौति-'कहिण मते !' इत्यादि । गौतम पृच्छति-हे भदन्त ! फुत्र खलु 'सक्फस्स देविंदस्स देवरम्णो' शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजम्य 'वरुणस्स महारण्णो' वरुणस्य महाराजस्य 'सय जले' स्वयज्वल 'नाम' नाम 'महाविमाणे' महाविमानम् 'पण्णते' प्रज्ञ अञ्जन, शखपालक, पुण्डू, पलाश, मोद, जय, दधिमुख, अयपुल, कातरिक (सक्कस्स ण देविंदम्म देवरणो वरुणस्म महारण्णो देसणाइ दोपलिओषमाइ ठिई पण्णत्तो) देवेन्द्र देवराज शफके लोकपाल वरुण महाराजकी कुछ कम दो पल्योपमकी स्थिति कही गई है । तथा(अहविचाऽभिण्णायाण देवाण एग पलिओषम ठिई पण्णता) वरुण महाराजके द्वारा अपत्य जैसे माने गये देयोंकी स्पिसि एफ पल्योपम की कही गई है । (एषमहिरिदीए जाव वरुणे महाराया) इस तरह ये वरुण महाराज इस प्रकारकी महान् झद्धि आदि वाले है। टीकार्प-इस सूत्र द्वारा मुम्रकार ने उत्तीयलोकपाल वरुण का निरूपण किया है गौतम प्रभु से पूछते है कि 'मते ! हे भदन्त ! 'सक्कस्म देविंदस्स देवरणो' देवेन्द्र देवराज शक्रके 'वरुणस्म महारणो' वरुण महाराजका 'समजले' स्वयज्वल 'नाम' नामका 'माविमाणे' महाविमान 'कहिण पण्णत्ते कहां पर प्रजप्त कहा गया है ? भगवान् ANA, A wias, Y५ मास्य, विभुम, Miya, त४ि ( मकस्स ण देविदस्स देवरण्णो वरुणस्स महारपणो देसूणाइ दोपलियोचमाइ ठिई पण्णचा) વન્દ્ર, દેવરાજ શાના ત્રીજા લેપાલ વરુણ મહારાજની સ્થિતિ છે ૫૦પમ કાળે ४२वा सहन न्यून ४ी छे (अठावच्चा ऽ मिण्णायाण देवाण एग पलिमोषम ठिा यष्णचा) १०९ मा मा नो भादि माहिथी सपन्न. ટીકાષ-સૂત્રકારે આ સત્રમાં કેન્દ્રના ત્રીજા લોકપાલ વરુનું નિરૂપણ કર્યું छ गौतम स्वामी महावीर प्रसन पछे- 'भते भात! 'सफ्फरस' देषिदस्स देवरणो' २२, २१२ यानी 'पणस मारणो' alon asia, पर महारास 'सय जले नाम महाविमाणे, ५५ नामनु भावान 'कहिण पन्न।। ४ये स्याने भाव छ ?
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy