SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1069
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ममेयचन्द्रिका टीका श ३७८.२ यमनाम लोकपालम्वरूपनिरूपणम् ८१७ पचति सोऽपि उपचारात 'कुम्भ' उत्युच्यते ११, 'बालू' वालु' भ्राष्ट्रस्थ तप्तवन्त्रबालुकासु नारयान मतहत्यार चणकादीनिव भर्जयति १२, 'वेयरणी त्ति य' चैतरणीति च तत्र यो देव विकुर्वणया क्षेत्रियपूरुधिरादिपूरितरेतरणीनामनदीस्वरूप पति म उपनगरात 'वैतरणी ' इति निगद्यते १३, 'ग्वरस्सरे' वरम्बर यो हि वचण्डान्वितशाल्मलीतरी भारोप्य नारयान atara वरवर तीक्ष्णस्वर गर्दभस्वर वा कुर्वाणान स्वयपाकनि आकर्षति सः 'स्वरस्वर' इति, १२, 'महाघा' महादेवो भयेन पय मानान नाग्यान जीवान पनि धाटे महाघोष कर्यन अवरुणद्रिम' 'महा 1 जी को घटाते हुए घणक घना आदिकी तरह सृजता है हम लिये इसका नाम पालु ऐसा हुआ है । 'वेगरणी' वैतरणी यह अपनी विकर्षणा से वैतरणी नामकी नदी बनाता है विक्रियाही पूपीत, रुधिर, आदि से उसे भर देता है हमलिये उपचारसे मका नाम मी 'वैतरणी' पेसा हो गया है । 'स्वरस्मरे' सरस्वर पर अपनी विकर्षणा से शामली वृक्षका उद्घान करता है और उनके 'जसे फोटोंसे युक्त उसे करके उस पर नरकजीयोंको चढ़ाता है, वश घे नाजी मारे कष्ट पहुत ही तीक्ष्ण स्वर अथवा गधे जैसा स्वर करते है अथवा पर स्वय भी ऐसा ही स्वर करता है और उन नारोंको से फिर बघता है | हमा नाम पर स्वर ऐसा पहा गया है । 'महाबोसे' महाघोष यह देव सबसे मागतें नाक जीवो को पशुओं के ममान पाहोंमें जाग्यी आवाज करना ई सभा राधे छे तेथी भने भारे '' हा प्रयोग है [१२] ' घालू ' બાલુ-જેમ ભાડમાં રેતી માથે ચણાને નકવામાં આવે છે, તેમ તમ રતી સાથે નારકા ना शरीग्ने तवसमा शेठनाश परभाषाभि देवाने वा [13] 'वेयरणी' વૈતરણીમા દેવી તેમની વૈક્રિય શક્તિથી વૈતરણી નદી બનાવે છે. અને વૈક્રિયતિથી अनावेद्या पाय, घर माहिधीतेने भरी [१४] 'खरम्पर' વિજાથી શમીવૃક્ષ અનારે છ તેને વજના જેવા કાંટાથી યુક્ત તેના ઉપર ચડાવે છે ત્યારે અત્યંત પીઘન કાણે નારી ચીંગે પાર્ટ -, અથવા પરમધાર્મિક દેવ પબુ ગઢબના જેવી ખવાજ [१५] 'महाघोमे' भदाधीच — भयथी नाम रस्वर-ते तेनी રીને નાયક ને ગદશની જેમ અવાજ કરે છે અથવા अभ्वर' देश
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy