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________________ ८१२ पाण्डरोगा इति वा, 'रिसावा' प्रशसि तिवा, 'पवासीर इति मापा प्रसिद्धानि' रुधिरसारिणा गुदारोगविशेषा भगदराया भगन्दरा इति वा डिययमला इ वा इदयग्लानि इमिया, 'मत्यय मग इना' मम्तायनानि पति वा 'नोणिसाचा' योनिशुगनि ति वा 'पासमका ' पार्स शूलानि इति वा 'कुच्छिमूला हवा तिलानि ति घा, 'गाममारी का ग्राममारी 'महामारी' इति मसिटा, या हि ग्राम मारयसिसा तथोक्ता, परम ऽपि विनेयम् 'आगरमारी हा आपरमारी पति वा, 'नगरमारी या नगर .मारी इतिघा, 'जिगममारी इवा' निगममारी विरा, खेडमारी पाखर मारी इति घा, 'गच्चडमारी :ना' पर्घटमारी इनि ना 'महम्म मारी या मडम्बमारी हतिया, 'दोणमुहमारी इवा' द्रोणमुग्वमारी इति था, 'पट्टणमारी वा' पत्तनमारी इति घा, पहनमारी प्रतिमा 'आयममारी इवा' आश्रममारी पाण्डरोग' हरिसाइ वा' पयासीर- अर्प-मशा समय पर उनमेसे खुन झरने लगता है। 'भगदराह चा' भगदर यह भी गुदाका. एक मामय कर रोग है-जो जीवकी ममाप्ति के साथ समाप्त होता है। 'हिययसलाइ चा' दयाल, मत्ययसलाह चा' मस्तकशूल, 'जाणिसलाह घा' योनिशुल, पामसलाह घा' पसलियोंको दर्द, कान्छ सलाइ वा कुक्षिशल-पेटफा दर्द, 'गाममारीइ धा' ग्राममें मरकी पना, 'अगरमाई घा' अगरमें मरफी का होना 'नगरमारीइया, नगरम मरकी होना, 'निगममारीईवा' विपयमें महामारीका होना ता. मारी बा' खेटमें मरकी होना, कधसमारीड घा' कर्यटमें मरकीका होना, 'दोणमुदमारीइ या'द्रोणमुखमें मरकी का होना, 'मरममारी इवा' मडपमें मरफीका होना, 'पट्टणमारीइ था, पट्टण-पसनमें 'मरफीका होना, 'आसममारीह वा आश्रममें तापसों के आश्रममें साा पा' १२स या मगदरापा' मरने। शो , हिययमतावा' पya g 'मस्थयमलाइ वा' मात Pat'जोणियलाइ वा यौनpa यतुं पासमलाइ या' पानी मामा , 'कच्छिमता वाशि -ने। भावो वा, 'गाममारी या' भन्नाभि , भरी र राज an, भरमार वा' up नाबाना स्वीमा 'नगरमारी पार नामा मानिसममा 'खेरमारी पा' मL मारी (RBI) भRA मा श) या कपरमारीइबा, रमा भावी, दोणमामारी पा' भुसभा भी पो या, 'मरेपमारी सामसभा भRaमा, 'पट्टणमारीइ वा न 44 'मासममारीहा '
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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