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________________ ममेयचन्द्रिका टीका श ३ उ ७सू ३ यमनामफलोकपालस्वरूपनिरूपणम् ८०७ इवा' यमफायिकाः इति वा यमस्य कायो निकायो येपामस्ति ते यमकायिका यमपरिवारभूता इत्यर्थ 'जमदेवयकाया इ वा' यमदैवतकायिका इति वा, यमम्य सामानिकदेवपरिवारभूता स्ययं 'पेयकाउया इ वा' मेतकायिका व्यन्तर विशेपा इति वा, 'पेयदेवयकाइया इवा' मेतदेवतायिया. प्रेताधीनदेवाना परिवारा इति वा, 'अमरकुमारा अमुरकुमारीओ' अमरकुमारा अमुरकुमार्य 'कदप्पा' पनपा कन्दर्पभावनामाक्तित्वेन फन्दर्पशीलमम्बन्धिदेवेषु उत्पमा पन्दर्पशीलवातिकेलि 'निरयवाला' निरयपाला नरकपालका , 'माभियोगा' भमियो। आदेश तद्भावनाभावितत्वेन आभियोगिकदेवेषु उत्पन्ना अमियोगवर्तिनच देवमिङ्करमाया । न केवलम् एते एव अपितु अन्येऽपीत्याइ-जे यावण्णे तहप्पगारा' इत्यादि । ये चाप्यन्ये तयाप्रकारा. मन्ति 'सम्चे ते है फाय-निकाय-ममूह जिनका ये यमकायिक हैं, ये यमके परिवारमृत हाते हैं-'जमदेवकाइयाड वा' यमदैवतकायिक यमके सामानिक देवोंके परिधाररूपदेव, 'पेयकाइयाइया' व्यन्तरविशेपरूप प्रेतकायिक, 'पियदेषयकाइयाइ या' मेताधीनदेवोंके परिचारभूत देव, 'असुरकुमारा' असुरकुमार 'असुरकुमारीओ' असुरकुमारिया 'कदप्पा' कन्दमावना से भावित होनेके कारण पदपंशीलसम्पन्धी देवों में उत्पन्न हुए देव, इनकी प्रकृति पदर्प-अतिक्रीडा-में ही रमनेवाली होती है 'निरयवाला' नरकपालक, 'आभियोगा' आभियोग नाम आदेशाका हैइस आदेशरूप अभियोगकी भावनासे भरपूर होने के कारण जो आभियोगिक देवोंमें उत्पन्न हुए हैं वे आमियोगिक देव , ये सदा आवेशपालन करने में ही लगे रहते हैं । अत ये देवोंके किर जैसे होते हैं। ये इतने ही देव यमकी आज्ञाके नहीं रहते हैं किन्तु 'जे यावण्णे' इनसे अतिरिक्त और भी 'तहप्पगारा' इसी तरहके મકાય સમૂહ જેમને છે એવા યમકાયિક ર તેઓ યમના પરિવાર હેય્ છે 'भमदेवकाझ्या इवा, यहेत 48 वो तो यमना सामानि देवाना परिवार ३५ हेवे। छे 'पेयकाम्या पा' तमि४ वा-2. २ना व्यन्त२ वा छ, 'पेयदेवयकाइयार वा ताधान होना परिपा३५ वा, असुरकुमारा' असुर भा, 'अमुरकुमारीयो' ममुरमाशा कदप्पा' ४४५२२-(तिसुमनी ભાવનાથી ભાવિત થવાને કારણે કર્પશીલ દેવોમાં ઉત્પન્ન થયેલા દેવને કદદેવ કરે 8) मा ४४५-तमान न २ 'निरयवाला' न२४५ia४, 'यामि योगा' मनियामा भाटे। सानियत व पीanatी आशा रना। હોય છે આમિગિક રવો અનાભિયોગિક વિના કિંકરા જેવા દેય છે કરવાનું તાત્પર્ય २४ ते मालियामिका पार पम भरारनी जामा २२ जे यानपणे ताप्पगारा' में ना ५५ ५२ हे वो 84सन्त मा पा मारना
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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