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________________ ७८२ इदधणू इ वा, उदगमच्छ-विहसिय-अमोहपाईणवाया इव पईणवाया इवा, जाव-सवयवाया इ वा, गामदाहा इवा, जावसनिवेसदाहा इ वा, पाणक्खया, जणक्खया, धणखया, कुल क्खया, वसणन्मूआ,अणारिया जे यावण्णे तहप्पगारा एते सम स्स देविंदस्स, देवरणो, सोमस्स महारण्णो अन्नया, अदिट्ठा, असुया, अस्सुया, अविण्णाया, तेसिं वा सोमकाइयाण देवाण, सकस्स ण देविदस्स, देवरणो, सोमस्स महारण्णो इमे अहावच्चा अभिण्णाया होत्था, त जहा-इगालप, वियालए, लोहि यक्खे, सणिञ्चरे, चंदे, सूरे, सुळे, बुहे, वहस्सई, राह, सकस्स ण देविंदस्स, देवरपणो सोमस्स महारपणो सतिभाग, पलिओवम ठिई पण्णता, एव महिड्ढिए, जाव - महाभागे सोमे महाराया२ ॥ सू० २ ॥ - छाया-जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्प दक्षिणे यानि इमानि समस्प धन्ते, नद्यथा-ग्रहदण्हा इति वा, ग्रहमुसलानि इति वा, ग्रागर्जितानि प्रतिमा, 'जपदीधे दीधे' इत्यादि । सूत्रार्य-(अपूदीये दीये मदरस्स पन्धयस्स) जम्बूदीप नामके बीप में मदर(मेरु)पर्वतकी (दाहिणेण) दक्षिण दिशा तरफ (जाइ इमाई) जो पे (समुप्पज्जति) उत्पन होते ६ (तमहा) जसे (गहराइ था, गहमुस लाइ था, गहगजियाई षा, गहअदाइ पा) ग्रहदण्ड, ग्रहमुसल, प्रह 'मयूदीवे दीवे' त्या'जयुदाब दाम । सुना-(अंमूदीवे दीवे मदरस्स पयस्स) paln नाम की ४२ पनी (हारिणेष) क्षिति२५ : (नार इमाइ समुप्पजति) नी पति याय छे (तना) -प्रभावना छ (गदेगामा, गाससाइ पा, गागज्जियाइ बा, गदगुदाइ वा) Ass, RHA AUTC,
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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