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________________ प्रमेदधन्द्रिकाटीका श ३४ ७सू १ शक्रस्य सोमादिलोकपालस्वरूपनिरूपणम् ७७९ 'परिक्खेवेण' परिक्षेपेण परिधिना 'पण्णचे' प्रज्ञप्तम् 'पासायाण' प्रासादानाम् 'चचारि' चतस्र 'परिवाडीओ यच्चामो' परिपाटय श्रेणय मातव्याः 'सेसा नत्यि' शेपा न सन्ति, मुधर्मादिका ममा इह न सन्ति, उत्पचिस्यानेपु एव तासा सद्भावात् 'समस्स ण देविंदस्स, देवरण्णो' शक्रस्य खल्ल देवेन्द्रस्य देवराजस्य 'सोमस्स महारपणो' सोमस्य महाराजस्य इमे वक्ष्यमाणा देवा 'आणा-उववाय-वयण-निइसे चिट्ठसि' आमो-पपात-वचन-निर्देशे तिष्ठन्ति, तत्र मामा-'कर्तव्यमे वेदम्' इत्यादेशरूपा, सेवा-उपपात , अभियोगपूर्वक आदेशो वचनम्, पश्निते कायें नियतार्यमुत्तरम् निर्देश , एतेपा द्वद्ध , तस्मिन, आमादिकारिणो देवानाह-'त जहा'-तद्यया-'सोमकाइया इ वा' सोमकायिका पीठयघका आयाम और विष्कमात्मा दीर्घता १६ सोलहजार योजनकी है। तथा परिधिका प्रमाण ५० पचास जार पाचसो सत्तानवे योजनसे भी कुछ अधिक है । 'पामायाण' प्रासादोंकी 'चत्तारि' चार 'परिवाडीआ' परिपाटिया-श्रेणियाँ जानना चाहिये । 'सेसा नरिथ' पाकी यहा सुधर्मा आदि समाएँ नहीं है। क्योंकि इनका सझाव उत्पत्ति स्थानोंमें है। 'सकस्स ण देविंदस्स देवरणो' देवेन्द्र देयराज शक्रके लोकपाल 'महारपणो' महाराज 'सोमस्स सामफे 'इमे ये वक्ष्यमाण 'देवा' देव 'आणा-उघवाय-घयण-निसे चिट्टति' आज्ञा' उपपात, पचन एवं निर्देशमें सदा तत्पर रहते हैं। 'गह करने योग्य ही है। ऐसे आदेशरूप वचनोका नाम आज्ञा है। सेवा करने का नाम उपपाम है अभियोग पूर्षक आदेश देनेका नाम वचन है। पूछे गये काममें नियत પીઠબ ધની લબાઈ અને પહેળાઈ સોળ હજાર એજનપ્રમાણ છે, અને પઘિ પચાસ ४२ पायसे। सत्ता ५०५८७] यानी सर अधिः छ 'पासायाण' हानी 'चत्तारि परिवाडीओ' यार परिपाटियो [A] सभापी 'सेसा नत्थी' सुधर्मा સભા આદિ બીજુ કઈ પણ ત્યા નથી, કારયુકે તેને સદભાવ ઉત્પત્તિ સ્થાનમાં જ હોય છે. ___ 'सफ्फस्स ण देविंदरस देवरण्णो देवेन्द्र, देव Arriasie 'महारष्णो सोमस्स' मारा सामना 'इमे देवा' नी३ प्रभावना 'आणा-उपवाय वयणणिऐसे चिति' तेमनी माता भान , सेवा ४२, तमना ४ा प्रभार તથા આદેશ પ્રમાણે ચાલે છે “આ કરવા ચેમ્ય જ છે, એવા અદિરૂપ વચનને આજ્ઞા કહે છે ઉપપાત એટલે સેવા, અભિગપૂર્વકના આદેશને વચન કહે છે પૂછેલા
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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