SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1008
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७७६ भगवतीय 'परिपखवण' परिक्षेपेग परिधिरूपेण 'पण' प्रसप्तम् यथितम् जाम्ररियामविमान स्स या मूर्यामविमानम्य 'वतन्बया' रक्तव्यता वर्तते सा 'अपरिमेमा अपरिशमा सर्वा 'माणियन्ना' भणितन्या सातव्या, कियापर्यन्त ? मित्यागासायामार-मार अमिसेभो' यावत्-अभिपेर , नूतनोत्पन्नम्य सोमस्य राज्याभिषेपर्यन्तमित्यर्थः, किन्तु 'नवरं नवरम्-विशेष पुनरेसावानेव यत् मर्यामदेवस्थाने मोमो देवो वक्त न्य तत 'समप्पमस्स ण महाविमाणस्स' सन्ध्याममय खलु महाविमानम्य 'या अघ अयोमागे 'सपक्खि ' सपक्षम् चतुर्दिक्षु, 'सपडिदिसि' मपतिरितम् चतुर्दिया णेषु 'असखेन्जाइ' असख्ये यानि 'जोयणार' योजनानि 'ओगाहिता' अरनाथ, समुल्लध्य 'पत्य ण' अत्र खलु स्थानविशेपे 'सक्कस्स दविंदस्स देवरको आठसा अरतालीस योजन से कुछ अधिक है। 'जा सूरिया भधिमाणस्म पत्तन्यया अपरिसेसा भाणियच्या' इस विषय में सूर्याभरिमानकी जैसी वक्तन्यता है-घही घक्तव्यता मपूर्णरूप जाननी चाहिये । घर वक्तव्यता फारात जाननी चाहिय तो इसके लिये कहा गया है कि 'जाप अभिसेओ' नृतन उत्पमएए सोमके राज्याभिषेकका जहातक वर्णन है यहांतक या वक्तव्यता जानना चाहिये । फिन्तु 'नवर' उस वक्तव्यतामें और इस वक्तव्यतामें ओ अन्तर है यह इस प्रकार से है कि सूर्याभदेवके स्थानमें यहां सोम देवका महण करना चाहिये । 'सजप्पभस्स ण अहे' संध्याप्रम विमानके नीचे अर्थात् तिर्यग् लोगों 'सपक्खि' चारों दिशाओमें सपडिदिसि और चारों विदिशाओंमें 'असखेज्जाइ' असंख्यात 'जोय णाई' योजनोंको 'भोग्गमित्ता' पारकरके 'एस्थ ण' इसी स्थान विशेषमें 'सफस्स देविंदस्स देखरपणो' देवेन्द्र देवराज शक्रके सोमस्स महा'मा सरियामविमागस्स पत्तजया अपरिसेसा भाणियन्या' मा विभाजन વર્ણન સૂવિમાનના વર્ણન કમાણે જ અક્ષરશ. સમજવું આ વર્ષના ध्या संधी अस २ त 'जाव अभिसेमो नूतन SHधये સોમના રાજ્યભિષેકનું જ્યાં સુધી વર્ણન આવે છે ત્યાં સુધી તેને ગ્રહણ કરવું જોઈએ ન પત્ત તે વર્ણન અને આ વર્ણનમાં નીચે પ્રમાણે ફેમ્બર કરવો જોઈએ તે વનમાં જ્યાં સૂર્યાભદેવ પર માને છે ત્યાં તેને બદલે આ વનમાં સેમદેવ પદ तु समप्पमस्स ण आहे. सध्या विमानना नाय- अ तियdu मपवितआरे शायमा. 'संपरिदिर्सि', ने सारे विहियाम्मामा लामा 'असंखेन्जार भ्यात'जोपणार--नागाहिता', पा२,१२वामी पत्पण' र स्थान मिसक्कस्स देविदस्सं देवरंग्यो' रेवन्द्र
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy