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________________ ७७० भगवती गृहे नारे जाव-पज्जुशासमाणे ' यापन पर्युपासीन विनयादि पूर्वक पर्य पासना कुर्वन 'एष बयासी' एवम् यक्ष्यमाणमयारेण गौतम अवादीयावात्सरणाव 'स्वामी समवस्त , पर्पत् निर्गच्छति, प्रतिगतापर्पत ' इत्यादि समागम् । क्यनप्रकारमाह-'सकस्स णं भते " शस्य खलु मदन्त । देवि दम्स देवरम्णो' देवेन्द्रस्य देवरामस्य पति क्यिन्त 'लोगपाला' सापाला 'पण्णता प्राप्ता यथिता ? भगानाह-'गोयमा' हे गौतम ! 'चतारि लोगपाला' चतारो लोकपला 'पण्णत्ता' प्रनता, ' त जहा'-वधा-सामे, दिया जाता है, 'रायगिहे नयरे राजगृह नगरमें 'जाय पज्जुधासमाणे' यावत् विनयादिपूर्षक प्रमुफी पयुपामना करते हुए गौतमने उनसे 'एच' इस नीचे कहे गये प्रकारसे 'वयासी' पूछा-यहां 'यामत्' शब्दसे इस विषय से सबध रम्बने वाला पहिलेका सष पाठ प्रहण किया गया है जो इस प्रकार से है-'स्वामी समघरत, पर्षत् चिनि र्गच्छति, प्रतिगतापर्पत्' इत्यादि-अर्थात् भगवान् महावीर राजगृह नगरमें आये धर्मोपदेश सुननेके लिये जनता अपने२ घरसे निकली धर्मोपदेश सुनकर जनता पीछे अपने२ स्थान पर चली गई इत्यादि। गौतमने प्रभु से क्या पूछा-सो अय षही विषय प्रकट किया जाता है-'सफस्स ण मते ! देविंदस्स देखरण्णो' हे भदन्त ! देवेन्द्र देवराज शक्रके 'लोगपाला' लोकपाल 'कर' कितने 'पण्णचा' प्राप्त हुए हैं? इसका उत्तर देते हुए भगवान् गौतम से कहते हैं कि 'यसारि लोगपाला पण्णता' हे गौतम ! चार लोकपाल प्रशस हुए 'रायगिहे नयरे ' In नगरमा 'भाष पशुपासमाणे ' आपद विनय प्रभुनी पपासना ४२वा गौतम स्वामी प्रभुने 'एव पयासी' प्रमाने पर અહીં પાવત' પરથી આ વિષય સાથે સંબંધ રાખનારે આગળને સમસ્ત પાઠ આણ राय छत सूत्रपा। साराय नाय प्रमाने स्वामी समरसता, पर्व चिनिर्गच्छति, प्रविगता पषत् ' Urus-6पीR KI RANB नजरां पार्वा, પદેશ સાંભળવાને માટે કે સમૂહ મહાવીર પ્રભુ સમણ ગયે, પપદેશનું અમલ કરીને હેકે પિતપેાતાને સ્થાને પાક સ્ત્ર ત્યાર બાદ ગૌતમ સ્વામી મહાવીર अन १६६ नमार शन मा HR छ -सफास्स म मते ! देविम्स देव रणी सोगपाला का पण्मचा" moral र २१०, untuwal
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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