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________________ ७२० स्थानागसूत्रे __ तथा-मनोविनय विनयापु कुशलस्य मनसः प्रवर्तनम् , अकुशलस्य च निवर्त्तनम् ४, एवं वाग्विनयः ५, कायविनयश्च ६ बोध्यः । तथा-लोकोपचारविनयः-लोकानाम् उपचारो व्यवहारस्तेन तद्रूपो वा विनय:-लोकव्यवहारहेतुको लोकव्यवहाररूपो वा विनय इत्यर्थः । इत्थं सप्तविधान विनयान् प्रदश्य सम्प्रति तद्घटकमनोवाकायविनयान् प्रशस्ताप्रशस्तभेदमधिकृत्य प्रत्येकं सप्तभेदत्वेन प्रहपयितुमाह- पसत्थमणोविणए ' इत्यादि । तथाहि-प्रशस्तमनोविनयः-प्रशस्त: कुशल. विचारणात्मको मनोविनयः सप्तविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-अपापका शुभचिन्तारूपः, अप्लावद्यः-सापद्यम्=अदतादानादिरूपं जुगुप्सितं कर्म, तन्नास्ति आश्रयणीयत्वेन विनय है, कहा भी है--" लामाइयाहचरणस्स" इत्यादि । इस गाथा का अथें पूर्वोक्त जैसा ही है । मनो विनय ४-विनय के योग्य साधुजनो में अच्छा मन रखनासुन्दर मात्त्विक विचार करना-और खोटे विचारों का परित्याग करना यह मनोविनय है. इमी प्रकार से बचनविनय और कापविनय सम. झना चाहिये, लोकोपचार विजय ७-लोकव्यवहार का हेतु रूप अथवा -लोकव्यवहार रूप जो विनय है वह लोकोपचार विनय है, __ अब सूत्रकार मन, वचन और काय के प्रशस्त और अप्रशस्त भेदों को लेकर उनमें लप्त प्रकारता का कथन करते हैं-" पसत्यमणो विण" इत्यादि-सुन्दर सद्विचारात्मा जो मनोबिलय है वह सात प्रकार का है-जैसे आपापक १ असोवद्य २, अक्रिय ३ निरूपक्लेश ४, अनावकर ५, अक्षपिकर ६ और अभूताभिसंक्रमण ७, इनमें से शुभ विचार रूप मानसिक विकल्प है वह अपापक मनोविनय है, अदनादानादि रूप जो जुगुप्सित कम है वह सायद्य है, यह सायय (४) मानविनय-विनयने योग्य साधुमे। प्रत्ये मनमा समाप रावा, સુંદર અને સાત્વિક વિચાર કરવા અને ખરાબ વિચારોને પરિત્યાગ કરે તેનું નામ મને વિનય છે. એજ પ્રમાણે વાવિનય વિષે પણ સમજવું. (૭) લેકવ્યવહારના હેતુરૂપ અથવા લેકવ્યવહાર રૂપ જે વિનય છે તેનું નામ લેકોપચારવિનય છે. હવે સૂત્રકાર મન, વચન અને કાયના પ્રશસ્ત અને અપ્રશરત ભેદના सात-सात प्राशनु ४थन ४२ छ-" पत्थमणोविणए ” छत्याहि સુદર વિચારાત્મક અથવા સદ્વિચારાત્મક જે મને વિનય છે તેના નીચે प्रभाये सात ४१२ ह्या छे-(१) २५५५ (२) असावध, मठिय, (४) नि२५४वेश, (५) मनासप४२, (६) पक्षपि४२ मने (७) अभूतालिस भए.
SR No.009310
Book TitleSthanang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages773
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size43 MB
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