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________________ . . . . स्थानास्त्र . एते द्वीपसमुद्रास्तु श्रेण्या व्यवस्थिता इति श्रेणिमाह-- म्लम् -सत्त सेढीओ पण्णत्ताओ, तं जहा--उज्जुआयया १, एगओ वंका २, दुहमओ वंका ३ एगो खहा ४ दुहओ खहा ५, चकवाला ६, अद्ध चकवाला ६। सू० ४२ ॥ छाया--सप्त श्रेणयः प्रज्ञप्नाः, तद्यथा-ऋज्वायता १, एकतो वक्रा २, द्विधातो वक्रा ३, एकतः खा ४ द्विधातः खा ५, चक्रवाला ६, अर्द्ध चक्रवाला ७॥ सू० ४२ ॥ - टीका--' सत्त सेढीओ' इत्यादि-- ' श्रेणयः-जीवपुद्गल संचाराश्रयाः आकाशप्रदेशपतयः सप्त प्रज्ञप्ता, तययाऋचायता-जुश्वासावायता चेति, यया जीवादय अर्धलोकादेरधोलोकादौ ऋजुन्या यान्ति सा आकाशप्रदेशपङ्क्तिः , यथा (--) इति स्थापना १। १ कालोद समुद्र २ पुष्करोद समुद्र ३ वरु गोद समुद्र ४ क्षीरोद समुद्र ५ऐनोद समुद्र एवं क्षोदोद समुद्र ७ अर्थात् इक्ष समुद्र जिसका जल इक्षु-(सेलडी) जैसा मधुर होता है । सब ४१ । ये द्वीप और समुद्र श्रेणि से व्यवस्थिन हैं-अतः अब सूत्रकार श्रेणिका कथन करते हैं "सत्त सेढीओ पण्णत्ताओ' इत्यादि । सूत्र ४२ । टाकार्थ-श्रेणियां सात कही गई हैं, जीव और पुद्गलों का मन आकाश के प्रदेशों की पङ्क्ति के अनुसार ही होता है, अतः जीव और पुद्गलों के संचार के आश्रय भूत जो आकाश के प्रदेशों की पङ्क्ति है वही श्रेणी है, वे श्रेणियां सात है--एक ऋग्वायता १, द्वितीया-एक तो નંદીશ્વર દ્વીપની અંદર નીચે પ્રમાણે સાત સમુદ્રો છે–(૧) લવણ સમુદ્ર, (२) सह समुद्र, (3) पुष्४२।४ समुद्र, (४) १रुप समुद्र, (५) क्षीराह समुद्र, (६) धृता समुद्र. ॥ सू ४१ ।। ઉપર્યુક્ત દ્વીપ અને સમુદ્રો શ્રેણિમાં વ્યવસ્થિત છે. તેથી હવે સૂત્રકાર श्रेणिनु ४थन ४२ छ-" सत्त सेढीओ पण्णताओ" त्याहि-(भू ४२) ટીકા–શ્રેણિઓ સાત કહી છે. જીવ અને પુનું ગમન આકાશના પ્રદેશોની પતિ અનુસાર જ થાય છે તેથી જીવ અને પુલોના સંચારના આશ્રયસ્થાન રૂપ જે આકાશના પ્રદેશની પંક્તિ છે, તેનું જ નામ શ્રેણિ છે, એવી શ્રેણિઓ સાત છે
SR No.009310
Book TitleSthanang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages773
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size43 MB
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