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________________ - - - - - - - T ' t Frm:TerarmTE BETTEST COtE- स्थानाङ्गले छाया-ब्रह्मलोकलान्तकयोः खलु कल्पयोर्विमानानि सप्त. योजनशतानि ऊर्ध्वमुञ्चत्वेन प्रज्ञप्तानि ॥ सु० ३९॥ - 'टीका--'मलोयलतपसु ' इत्यादि-- व्याख्या स्पष्टा-॥ मु०,३२० .. :___ म्लम्-भवणवासीणं देवाणं 'अवधारणिजा, सरीरमा उको सेणं सत्त रयणीओ उ उच्चत्तेणं पण्णता । एवं वाणमंतराणं एवं जोइसियाण । सोहम्भीसाणेसुण कप्पेसु देवाण भवधार: णिजगा सरीरंगा सत्त रयणीओ, उड्डे उच्चत्तेणं पण्णता सू१४०॥ छाया--भवनवासिनां देवानां भवधारणीयानि शरीरकाणि । उत्कर्षेण सप्त रत्नीः ऊर्ध्वमुच्चत्वेन प्रज्ञप्तानि । एवं व्यस्तराणाम्एक भवनवासिनाम्- सौधर्मेशानयोः खलु कल्पयोः देवानां भवधारणीयाणि शरीरकाणि सात रतीरूद्धमुच्चत्वेन प्राप्तानि ।। मु० ४० ।। - टीका--भवर्णवासी इत्यादि व्याख्या स्पष्टा ॥ सु० ४१ 15 मा वंभलोबलतएका कप्पेस।" इत्यादि । सूत्र ३९ . If जीवमलोक एवं लानकि करपो में स्थित विमानों की ऊँचाई सातासौ योजन की कही गई है । मुत्र ३९ । eEET ....." भवणवासीणं देवाणं भयधारिणीना" इत्यादि । मन्त्र ४० । टीकोर्थ-भवनवासी देवों के भवधारणीय शरीर उत्कृष्ट से सात हाथ उनि कहे गये हैं। इसी तरह से ध्यन्तरों के और ज्योतिष्क देवों के शारीस भी जानना चाहिये, सौधर्म और ईशान इन दो कल्पों में देवों केभित्री धारणीय शरीर उचाई में सात हाथ के कहे गये हैं। संत्रा " बभलोयलतएसु णं कप्पेसु त्या 3 सू. 5 s, Balrds पान HिIARE AVAT साता योजनामा छ -12 (3011020 - Epic is afts भवणवासीणं देवाण भवधारणिज्जा" त्याह-(सू॥ ४01. IST ટીકાર્થ—ભવનવાસીની યુધારી શરીરની ઉ ઊંચાઈન્સાસ હાથ अभा सीट से Rथत यस्तो याति देवानाgs ધારી શરીરની ચાઈ વિષે, પણ સમજવું સૌધર્મ અને ઈશાન કોનો રાતે ભવધરીય નીચાઈ સાહા પ્રમાણૂકહી છેes સુદ્ધા ess
SR No.009310
Book TitleSthanang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages773
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size43 MB
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