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________________ सुधाटोका स्था० ७ ० १६ मनुष्यलोकवर्षधरपर्वतादिनिरूपणम् ६४१ ७। जम्बूद्वीपे द्वीपे सप्त वर्षधरपर्वता. प्राप्ताः, तद्यथा-क्षुद्रहिमवान् १, महाहिमवान् २, निषधः ३, नीलवान् ४, रुकमी ५, शिखरी ६. मन्दरः ७ जम्बू द्धीपे द्वीपे सप्त महानद्यः पूर्वाभिमुख्यो लवणसमुद्र समर्पयन्ति, तद्यथा-गङ्गा १, रोहिता २, हीः ३, सीता ४, नरकान्ता ५, सुवर्णकूला ६, रक्ता ७। जम्बुद्वीपे द्वीपे सप्त महानद्या, पश्चिमाभिमुख्यो लवणसमुद्रं समर्पयन्ति, तद्यथा-सिन्धुः १, वर्ष क्षेत्र ६, महाविदेह क्षेत्र ७, जम्बूद्वीपमें सात वर्ष घर पर्वत कहे गये हैं। जैसे-क्षुद्र हिमवान् १, महा हिसवान २, निषध ३, नीलवान '४, शिखरी ६, और मन्दर ७, जम्बूदीप नामके दीपमें सात महानदियां कही गई है जो पूर्वाभिमुखी होकर लवणसमुद्र में जाती हैं। जैसेसिन्धु १, रोहितांशा २, हरिका-ता ३, सीतोदा ४, नारीकान्ता ५, रुक्मकूला ६, और रक्ताबनी ७, पौरस्त्यार्द्ध धातकीखण्ड द्वीपमें सात वर्ष कहे गये हैं-जैसे-भरत याच महाविदेह पौरस्त्याई धोतकोखण्डे. द्वीपमें सात वर्षधर पर्वत कहे गये हैं-जैसे-क्षुद हिमवान १, महा हिमवान् २, निषध ३, नीलचात् ४, रुक्मी ५, शिखरी ६, पूर्व मन्दर ७, धातकी खण्ड द्वीपमें सात महानदियां पूर्वाभिमुखी होकर कालोदसमुद्र में जाती हैं-जैसे-गङ्गा १, रोहिता २, ही ३, सीता ४, नरकान्ता ५, सुवर्णकूला ६, रक्ता ७, पौरस्त्याई धातकीखण्डद्वीपमें सात महानदियां पश्चिमाभिमुखी होकर लवणलामुद्र में जाती हैं-जैसे-सिन्धु १, रोहितांशा २, રમ્યકર્ષક્ષેત્ર, અને (૭) મહાવિદેહક્ષેત્ર दी५मा सात वर्ष ५२ पता भावसा छ-(१) क्षुद्र भिवान् (२) माहिमवान (3) निषध, (४) नीवान (५) शिमरी, (6) भने भ४२ (७) જંબુદ્વીપમાં સાત મહાનદીઓ કહી છે, જે પૂર્વમાં વહીને લવણસમુद्रने भणे छ. तमना नाम सा प्रमाणे छे-(1) सिंधु, (२) शडितांशा, (3) डरिता , (४) सीता, (५) नारीral, (६) २भया भने (७) २४तावती ધાતકીખંડ દ્વીપના પૂર્વાર્ધમાં સાત વર્ષ ક્ષેત્ર કહ્યાં છે–ભરતથી લઈને મહાવિદેહ પર્યન્તના સાત ક્ષેત્રે અહીં ગ્રહણ કરવા. ધાતકીખડ દ્વિીપના धिमा सात वर्ष ५२ ५ मा छे-(१) क्षुद्र भिवान् (२) मडा भिवान (3) निषध, (४) नासपान (५) २४भी, (६) शिमरी मते (७) पू भन्४२. ધાતકીખંડ દ્વીપમાં સાત મહાનદીએ પૂર્વમાં વહીને કાલેદ સમુદ્રને न भणे . तमना नाम-(१) , (२) २॥हिता, (3)ी , (४) सीता (५) न२४न्ता, (६) सुवर्ण गने (७) २४ता पाता दीपन पूर्वाधना આ સાત મહાનદીઓ પશ્ચિમ તરફ વહીને લવણ સમુદ્રને જઈ મળે છે– स्था०-८१
SR No.009310
Book TitleSthanang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages773
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size43 MB
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